लहसुन को क्यों नहीं खाना चाहिए?
दोस्तों कई लोग बोलते हैं कि लहसुन और प्याज खाने से पाप लगता है।
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दोस्तों कई लोग बोलते हैं कि लहसुन और प्याज खाने से पाप लगता है।
दोस्तों सबसे पहले यह समझें कि लहसुन और प्याज खाने से पाप नहीं लगता है बल्कि किसी का धन हड़पने, बेईमानी करने, और छल कपट करने से पाप लगता है।
दोस्तो जो लोग ध्यान या मेडिटेशन करते हैं उनके लिए सात्विक भोजन आवश्यक है। लहसुन को राक्षसी भोजन कहा गया है जो रोग दूर करने और जीवन देने वाले होने के बावजूद पाप को बढ़ाते हैं और बुद्धि को भ्रष्ट कर अशांति को जन्म देते हैं। इसलिए धार्मिक कार्यों में प्याज और लहसुन का प्रयोग वर्जित है।
दोस्तों सनातन धर्म के वेद शास्त्रों के अनुसार, प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तेजना, और अज्ञानता को बढ़ावा देती हैं जिससे अध्यात्म के मार्ग पर चलने में कठिनाई होती है और व्यक्ति की चेतना प्रभावित होती है। दोस्तों इससे ध्यान भटकता है और पूर्ण एकाग्रता नहीं हो पाती। इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
दोस्तों कुछ लोग प्याज और लहसुन इसलिए नहीं खाते क्योंकि वे भगवान को भोग लगाकर ही अन्न ग्रहण करते हैं और प्याज लहसुन का भगवान को भोग नहीं लगाया जाता। वे मानते हैं कि जिस वस्तु का भोग भगवान को नहीं लगाया जा सकता उसे वे कैसे ग्रहण कर सकते हैं।
प्याज और लहसुन को तामसी प्रवृत्ति में गिना जाता है इसलिए भी कुछ लोग भोजन में इसका प्रयोग नहीं करते। हमारे घर में कभी प्याज और लहसुन नहीं आता और मैंने कभी इनका स्वाद नहीं लिया है। बिना प्याज और लहसुन के भी भोजन बहुत स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।
प्याज और लहसुन नहीं खाने का धार्मिक महत्व भी है; इन्हें राहु और केतु भी कहा जाता है।
सनातन धर्म मे "प्याज और लहसुन" क्यों नहीं खाते?
दोस्तों "प्याज और लहसुन ना खाना" वैसे तो आदमी की अपनी मर्जी के ऊपर निर्भर है। लेकिन फिर भी सनातन धर्म में प्याज और लहसुन को खाना ऋषि मुनियों के लिए या फिर जो लोग ध्यान में बैठते हैं उन लोगों के लिए उचित नहीं माना गया है।
दोस्तों क्योंकि प्याज और लहसुन आदमी की उत्तेजना को बढ़ाते हैं जो कि किसी भी ऋषि या मुनी का ध्यान भंग करने के लिए उन का ब्रह्मचर्य तोड़ने के लिए काम आ सकता है इसलिए सनातन धर्म में प्याज और लहसुन नहीं खाते।