क्या भारत में विमुद्रीकरण 2016 में पहली बार हुआ है?

क्या भारत में विमुद्रीकरण 2016 में पहली बार हुआ है?

क्या 2016 में विमुद्रीकरण पहली बार हुआ है?

हेलो दोस्तों क्या हाल हैं आप सबके उम्मीद करती हूं आप सभी अच्छे होंगे दोस्तों आप काफी समय से सुनते आ रहे हैं की भी मुद्रीकरण हो गया जिसको इंग्लिश में Demonetization कहते हैं और इसके ऊपर काफी लोग मोदी जी को ताना मारते हैं और बोलते हैं कि भाजपा सरकार खराब है। 

क्योंकि उन्होंने विमुद्रीकरण कर दिया और उन्होंने सारी अर्थव्यवस्था को देश-न्यास कर दिया जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। विमुद्रीकरण आमतौर पर उन देशों में होता रहता है जहां पर उनकी लोकल करंसी को चुराना जितना आसान होता जाता है वहां पर विमुद्रीकरण की उतनी संभावना बढ़ जाती है।

Demonetization: मुद्रा चरण में से कुछ खास किस्म की नोटों को केंद्र या फिर राजा या कोई भी central authority के द्वारा नोटों को हटा देने की प्रक्रिया को विमुद्रीकरण या नोटबंदी कहते हैं।

दोस्तों भारत की ही बात करें तो विमुद्रीकरण 1946 और 1978 में भी हो चुका है। यह विमुद्रीकरण तीसरा था जो की 2016 में मोदी जी के द्वारा किया गया है। तो दोस्तों लिए जानते हैं विमुद्रीकरण होता क्यों है? विमुद्रीकरण होता क्या है और भी अन्य जानकारियां जो भी मुद्रीकरण से संबंधित है।

1946 मे विमुद्रीकरण क्यों हुआ?

दोस्तों अगर 1946 में विमुद्रीकरण की बात करें तो वह अंग्रेजों के द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य काले धन और अवैध रूप से जमा की गई राशि पर काबू पाना था उनका उद्देश्य था कि जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लोगों ने बड़ी मात्रा में काले धन और आवेदन कोई इकट्ठा कर लिया था। 

उन्होंने कोई भी टैक्स नहीं भरा था और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों में अपना फैसला लगा दिया था। ताकि सरकार उनसे टैक्स न वसूल सके तो ब्रिटिश सरकार को इस बात की चिंता हुई कि जितना काला धन होगा वह समझ में असंतुलन पैदा कर सकता है और एक जगह पैसे की जमाखोरी हो सकती है। जो कि बाद में नुकसानदायक हो सकती है विमुद्रीकरण के तहत उसे समय 1000 रुपये, ₹5000 और ₹10000 के बड़े नोटों को अवैध घोषित कर दिया गया था।

उसे समय में बड़े-बड़े नोटों का जैसे 5000 और 10000 के नोटों का बड़ा प्रचलन था और वह धनी वर्ग के पास ही अधिकतर होते थे। अमीर अमीर लोग और सेठ लोग उसे पैसे को रखते थे और आम लोगों के हाथ में वह नोट नहीं आते थे या फिर कभी कभार आते थे। 

यह कदम मुख्य तौर पर उन अमीर सेठो पर ही हमला था जो कि अवैध रूप से काले धन को इकट्ठा करके अपने पास रखे हुए थे। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में काफी मदद की।

1978 में विमुद्रीकरण क्यों हुआ?

दोस्तों 1978 में भी मुद्रीकरण होने के भी बहुत से कारण थे। दोस्तों इस समय जनता पार्टी की सरकार थी और कांग्रेस पार्टी की किरकिरी करके उन्होंने सरकार बनाई थी जिसे उन्होंने काफी कठोर फैसले लिए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में 1978 मे मुद्रीकरण को लागू किया गया।

इस कदम का मुख्य उद्देश्य भी 1946 के विमुद्रीकरण की तरह ही काला धन, नकली मुद्रा और अवैध लेन देन को रोकना था। भारतीय अर्थव्यवस्था में नकली मुद्रा काफी अस्थिरता पैदा कर रही थी। उसे समय भारत में राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता का दौर चल रहा था और काले धन की समस्याएं बढ़ती जा रही थी। ऐसा काला धन जो की करके चोरी भ्रष्टाचार के माध्यम से बहुत ज्यादा बड़ी संख्या में इकट्ठा किया गया था। 

वह अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था इसी वजह से 16 जनवरी 1978 को अचानक से सरकार ने घोषणा की की हजार रुपये ₹5000 और ₹10 के नोट अब वैध मुद्रा नहीं रहेंगे। विमुद्रीकरण का यह निर्णय आरबीआई के द्वारा 1934 की धारा 26(2) के तहत लिया गया जो सरकार को किसी भी मुद्रा को अमान्य घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है।

इसके तहत लोगों के नोटों को बैंक में जमा करवाने और बदलवाने की समय निर्धारित कर दी गई थी। मोरारजी देसाई ने इस कदम से भ्रष्टाचार और कर चोरी को काफी हद तक रोका। सरकार का मानना था की बड़ी मात्रा में काला धन बड़े-बड़े लोगों के पास था और इसे अब बेकार कर दिया गया है साथ ही नकली नोटों का प्रचार और उनकी भी एक फौज सी खड़ी हो गई थी उसको भी गहरा धक्का लगा था।

2016 में विमुद्रीकरण क्यों किया गया?

दोस्तों 8 नवंबर 2016 को अचानक से सुबह-सुबह खबर मिलती है कि 500 और 1000 के महात्मा गांधी सीरीज के नोट अवैध घोषित कर दिए गए हैं और 31 दिसंबर तक आप अपने नोट बैंक में जमा करवा के नए नोट ले सकते हो। ऐसी घोषणा नरेंद्र मोदी जी के द्वारा की गई।

दोस्तों 2016 की विमुद्रीकरण या फिर नोटबंदी का कारण भी काले धन, नकली मुद्रा और भ्रष्टाचार से लड़ना था यह है घोषणा देशभर के लिए एक बड़ा कदम था इसके कई प्रभाव पड़े जिनमें से मुख्य प्रभाव है।

दोस्तों सरकार का मानना था की बड़ी संख्या में काला धन जो कि टैक्स चोरी और भ्रष्टाचार से इकट्ठा किया गया है। इसे कई धनी लोगों ने और उच्च वर्ग के लोगों ने इकट्ठा कर लिया है। नोटबंदी करने से यह काला धन सबको पता चल जाएगा की किसके पास कितने पैसे हैं और कर चोरी नहीं होगी।

साथ ही दोस्तों भारत में नकली मुद्रा पाकिस्तान के द्वारा काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी इसकी समस्या भी काफी गंभीर थी और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गई थी। पाकिस्तान वहां से नकली नोट बन बनकर आतंकवादियों को देता और इनका उपयोग अवैध गतिविधियों में किया जा रहा था। जिससे नोटबंदी करने से नकली नोटों की छटनी हो गई और वह बाजार से हट गए।

दोस्तों नोटबंदी से डिजिटल अर्थव्यवस्था को भी काफी बढ़ावा मिला है। नोटबंदी के दौरान लोगों ने डिजिटल भुगतान और कैशलेस को बहुत ज्यादा उपयोग किया है। जिससे की अर्थव्यवस्था में काफी हद तक बढ़ोतरी देखने को मिली है। नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान में काफी वृद्धि देखी गई है और डिजिटल इंडिया जैसा मिशन भी सफल हुआ है।

नोटबंदी के दौरान समस्याएं:

दोस्तों नोटबंदी के दौरान समस्याएं भी काफी आती हैं जिनमें से मुख्य समस्याएं थी कि देशभर में कैश की भारी कमी हो गई जिससे आम जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

कैश की कमी होने के कारण अनपढ़ किसने छोटे व्यापारियों को भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

इसके बावजूद दोस्तों अगर अपन देखें तो यह है आर्थिक सुधारो का एक हिस्सा था और भविष्य में इसे और अच्छा होने की उम्मीद है और आज हम डिजिटल ट्रांजेक्शन ज्यादा कर रहे हैं जिससे कि देश को फायदा हो रहा है और कर चोरी से लोग बच रहे हैं।

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