हैलो दोस्तों कैसे हैं आप! उम्मीद करती हूं आप सब अच्छे
और स्वस्थ होंगे।
thebetterlives.com में आपका स्वागत है।
मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
दोस्तों आज हम बात करेंगे एक बहुत ही मजेदार और ख़ास topic पर जो है किसी से बदला कैसे ले?
जी हां दोस्तों यही है आज का topic बदला लेने का सबसे आसान तरीका(best way to take revenge)!
दोस्तों यह प्रतिशोध की अग्नि जब हमारे हृदय में जल रही होती है। यह अग्नि तभी बुझती है जब हम सामने वाले की ऐसी की तैसी नहीं कर देते हैं। यानी कि जिस बात को लेकर सामने वाले ने हमें परेशान किया है बुरा भला कहा है जब तक हम उसकी कही हुई बातों का बदला नहीं ले लेते। तब तक हमारे प्रतिशोध की यानी कि बदले की भावना शांत नहीं होती।
दोस्तों आज हम आपको यही कला सिखाने वाले हैं कि आप अपने प्रतिशोध की अग्नि को शांत कैसे करें? कैसे आप सामने वाले से बहुत ही आसान तरीके से बदला ले सकते हैं? तो आइए दोस्तों जानने की कोशिश करते हैं कुछ ऐसे तथ्य ऐसे तरीके जो हमारे बहुत काम आने वाले हैं:
दोस्तों सबसे पहले तो हम इस बात को अच्छी प्रकार से जान लेंगे कि हमें प्रतिशोध लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए?
दोस्तों प्रतिशोध की भावना बिल्कुल ऐसी है जैसे कि एक जलता हुआ धधकता हुआ कोयला अपने हाथ पर रखना और इंतजार करना कि कब वह सामने वाला इंसान मेरे सामने आए और मैं यह जलता हुआ कोयला उसके ऊपर फेंक दु।
अब दोस्तों सामने वाला तो जब जलेगा तब जलेगा लेकिन जब तक आपको सामने वाला नहीं मिल जाता तब तक यह जलता हुआ कोयला आपको जलाता रहेगा और आप सामने वाले को जलाने के इंतजार में खुद जलते रहेंगे।
तो दोस्तों जो यह बदले की भावना है प्रतिशोध की भावना है यह बिल्कुल ऐसी ही है
लेकिन दोस्तों ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि मेरे कलेजे को शांति तभी मिलेगी जब मैं सामने वाले को उसकी कही हुई एक एक बात का बदला ना ले लु। उसको जली कटी ना सुना लु।
तब तक मेरे कलेजे को ठंडक नहीं मिलेगी और अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए लोग कई दिनों तक, कई महीनों तक बदले की भावना में जलते रहते हैं।
अपना सुख और चैन सब दाव पर लगा देते हैं। अपनी भूख प्यास सब त्याग देते हैं और सिर्फ इसी बारे में सोचते रहते हैं कि मैं सामने वाले से कैसे बदला लूं? कैसे उसको नीचा दिखाऊ? कैसे उसको अपनी नजरों में गिराऊ? कैसे कुछ एसा करूं के सामने वाला दुखी हो जाए? इसी चक्कर में लोग अपने जरूरी काम को छोड़कर तरह-तरह के तरीके निकालते रहते हैं।
लेकिन दोस्तों सामने वाले को सजा मिले या ना मिले लेकिन आपको तो शांति चाहिए ना। इसलिए दोस्तों आपका दिमाग शांत होना बहुत जरूरी है। अगर आप में भी यह प्रतिशोध की भावना है तो किसी को आपने अपने दिमाग में जगह दे रखी है। किसी को आपने अपने दिल में जगह दे रखी है बिल्कुल फ्री।
दोस्तों कोई अगर अपना कमरा भी किराए पर देता है तो उसका वह किराया लेता है। लेकिन आपने तो फ्री में ही सामने वाले को अपने दिल में और अपने दिमाग में जगह दे रखी है। जिसका ना तो आपको कोई फायदा हो रहा है और ना ही आपको उसका rent मिल रहा है बल्कि उसको आप अपने अंदर कर तड़प रहे हैं परेशान हो रहे हैं
इसलिए कहा जाता है कि प्रतिशोध की भावना रखने वाला व्यक्ति अपने लिए दो कब्रे खोदता है। सामने वाले की कब्र तो बाद में खोदता है। उससे पहले वह अपने लिए कब्र खोद लेता है। तो इसलिए दोस्तों यह एक ऐसी बदला एक ऐसी काली भावना है जो इंसान का जीवन दुख से भर देती है।
जिस प्रकार से दोस्तों जब बिच्छू कभी आग में जलता है तो क्या करता है कि अपने ही ढंक से अपने आप को डस लेता है और इस प्रकार से वह मर जाता है। आग में जलने से वह बाद में मरता है। लेकिन अपने ही द्वारा डसे जाने से वह पहले मर जाता है।
उसी प्रकार से प्रतिशोध की अग्नि में जो इंसान जल रहा होता है। वह अपने आप से उसी तरह सजा दे रहा होता है। जैसे आग में जलता हुआ बिच्छू अपने आप को डंक मार कर सजा देता है। सामने वाले को कभी सजा मिलेगी तब मिलेगी लेकिन प्रतिशोध करने वाला इंसान हर पल अपने आप को सजा दे रहा होता है। बदले की आग में खुद को जला रहा होता है।
दोस्तों जब हम प्रतिशोध की भावना रखते हैं तो यह भावना क्या करती है। किस तरह से हमारे दिल दिमाग और हमारे शरीर पर असर डालती है आइए इसे भी जानने की कोशिश करते हैं:
दोस्तों जब हम किसी से बदला लेना चाहते हैं तो पहले हम उससे बदला लेते हैं। फिर वह हमसे बदला लेता है। फिर हम उससे फिर बदला लेते हैं। इसी तरह से बदले पर बदला चलता रहता है और हमारे पाप कर्म ऐसे ही बढ़ते रहते हैं और एक दिन यह बदला लेने की भावना एक भयंकर लड़ाई का रूप ले लेती है। जिसमें बहुत सारा नुकसान हो जाता है।
कई बार तो देखा गया है कि बदले की भावना में पूरे परिवार के परिवार खत्म हो जाते हैं। घर बर्बाद हो जाते हैं। एक दूसरे को बहुत तकलीफ दी जाती है। बच्चों को जानवरों को बड़ों को सब को बदले की भावना में झोंका जाता है।
सभी को इसका नुकसान उठाना पड़ता है। बदले की भावना में मन इतना दुखी हो जाता है कि चारों तरफ दुख ही दुख नजर आने लग जाता है और जिस इंसान का मन दुखी हो जाता है। उस इंसान को दुनिया में कोई भी सुख नहीं मिल सकता ऐसे इंसान को कभी भी शांति नहीं मिल सकती।
इसलिए जरूरी यह है कि हमें अपने मन में बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए। बदले की भावना जैसी काली प्रवृत्तियों को मन को दूषित करने वाली भावनाओं को हमें अपने मन में नहीं रखना चाहिए। अगर आपको किसी ने कुछ कह दिया है तो उसको उसी time अपने दिमाग से अपने दिल से निकाल देनी चाहिए।
आपको यह सोच लेना चाहिए कि सामने वाले ने जो आपके साथ गलत किया है या आपको कुछ गलत बोला है तो उसका हिसाब भगवान उसके साथ अपने आप कर लेंगे। आपको उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। जो गलत करता है उसको उसका परिणाम उसका नतीजा भी गलत ही मिलता है। हमें खुद पर नियंत्रण रखना चाहिए कि हम किसी के साथ गलत ना करें किसी को गलत ना बोले
दोस्तों हम जिस को सजा देना चाहते हैं उसको सजा देने का सबसे आसान तरीका यही है कि आप उसको माफ कर दे और आप अपने दिल से उसकी बातों को निकाल दें।
जितनी जल्दी आप उसके कड़वे वचनों को भुला देंगे। उसको माफ कर देंगे। उतनी ही जल्दी आपका दिमाग शांत होगा और इससे आपको बहुत शांति मिलेगी। आपका मन शांत रहेगा। आपके दिल को सुकून मिलेगा। आपकी रातों की नींद अच्छी होगी और सामने वाले के साथ आपके संबंध भी खराब नहीं होंगे।
इसके अलावा दोस्तों ऐसे बहुत सारे प्रमाण मिलते हैं जिससे कि यह पता चलता है कि बुराई के साथ अच्छाई करने से अच्छाई की जीत होती है। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि अर्जुन और उसके भाइयों उसके भाइयों के साथ दुर्योधन और कौरवों ने अन्याय किया। उनके साथ धोखा किया चौसर के माध्यम से इस पर श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम इनको मारो अर्जुन ने कहा कि क्यों?
क्योंकि दोस्तों भगवान अपने साथ हुए अन्याय को तो सहन कर सकते हैं। लेकिन उसके भक्तों के साथ अगर कोई अन्याय करे तो यह भगवान को कभी भी बर्दाश्त नहीं होता। उसके भक्तों के प्रति किए गए अपराध को भगवान कभी क्षमा नहीं करते।
इसलिए अर्जुन के अंदर बदले की भावना नहीं थी फिर भी भगवान ने उनको motivate करके युद्ध करने को प्रेरित किया। क्योंकि भगवान उनको इंसाफ दिलाना चाहते थे। उनके साथ हुए अन्याय का बदला लेना चाहते थे। इसलिए दोस्तों आपके साथ भी अगर कुछ अन्याय हुआ है।
आपके सगे संबंधियों ने, आपके भाइयों ने, आपके पड़ोसियों ने अगर आपको कुछ उल्टा सीधा बोला है। आप का अपमान किया है तो आप उसकी बिल्कुल भी चिंता ना करें। क्योंकि भगवान की नजर हर इंसान पर होती है और आप निश्चिंत होकर अपने मन को शांत रखिए वक्त आने पर भगवान आपका प्रतिशोध अपने तरीके से जरूर लेंगे।
भगवान सबके साथ न्याय करते हैं फिर चाहे वह पांडव हो या आप और हम जैसे भक्त दोस्तों ऐसे बहुत सारे उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं।
लेकिन दोस्तों क्षमा करना भी कभी-कभी बहुत कठिन होता है। क्योंकि हम सामने वाले को कहीं ना कहीं दोषी मानते हैं और हम जल्दी से उसको माफ नहीं कर पाते।
देखिए दोस्तों हमें यह समझना होगा कि हमारे जीवन में जो भी सुख दुख है। यह हमारे कर्मों के ही फल हैं। इसलिए सामने वाला व्यक्ति तो सिर्फ मोहरा होता है। बाकी यह सब होता है भगवान की इच्छा के अनुसार जैसे कि भगवान श्री राम वनवास जाना चाहते थे
और उन्होंने कैकई के द्वारा दशरथ से दो वर मांगने की बात कही और राम की जगह भरत को राजा बनाने की बात कही इन सब में भगवान श्री राम की ही इच्छा शामिल थी मंत्रा और कैकई तो सिर्फ निमित्त मात्र थी।
ठीक इसी प्रकार भगवान सारे काम अपनी इच्छा से ही करवाते हैं। फिर वह दुख हो या सुख हो लड़ाई झगड़ा जो भी होता है। सब उनकी इच्छा से होता है। हर काम के पीछे कोई ना कोई भगवान का लक्ष्य जरूर होता है। यह सब हमारी और आपकी समझ में नहीं आता इसलिए हम दुखी होते रहते हैं।
इसलिए दोस्तों जो सुख-दुख हमारी जिंदगी में आते हैं। वह हमारे अपने कर्मों का फल ही मान लेना चाहिए। उसी को मानकर हमें आगे बढ़ना चाहिए। हमारे साथ जो भी होता है उसे भगवान की इच्छा मान कर आगे बढ़ना चाहिए। हमें सामने वाले को दोषी ना मानकर अपने आप को सजा नहीं देनी चाहिए। हमें किसी से बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए।
Conclusion:
हमें सोचना चाहिए कि जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। जो भी होता है भगवान की मर्जी से होता है। इसमें सामने वाले की कोई गलती नहीं है और हमेशा अपने वाले को माफ कर देना चाहिए। इससे हमारे मन को शांति मिलेगी।
दोस्तों उम्मीद करती हूं आज की जानकारी आपको पसंद आई होगी ऐसी ही ज्ञानवर्धक और महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए आप हमारी website पर आए।
दोस्तों आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।।