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दोस्तो जब मनुष्य आदि मानव हुआ करता था उस समय पर वह अकेला रहा करता था। धीरे-धीरे उन्होंने साथ रहना शुरू किया और उसके बाद उन्हें एक अलग से शक्ति का एहसास हुआ जोकि collectivity में मिलती है।
आमतौर पर उसके बाद बहुत से लोग साथ रहने लगे और एक साथ शिकार करते और आकर और शिकार को एक साथ बैठकर खाते। उसके बाद उनमें एकता की भावना आनी शुरू हो गई और उन लोगों ने फिर समय को जीवन भर एक साथ गुजारने का निश्चय किया।
धीरे-धीरे यह उत्सव सांस्कृतिक कार्यक्रमों मोबाइल में बदल गया जैसे ही कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता बहुत से लोगों का हंसी खुशी समय व्यतीत होता। जिससे आदिमानव को एक अलग प्रकार की ऊर्जा महसूस होती। उसके बाद से ही धीरे-धीरे समाज में उत्साह और सांस्कृतिक कार्यक्रम होने लगे जिससे लोगों की भीड़ जुटने लगी और उस भीड़ से ही लोगों को आपस में एकता महसूस होने लगी।
उस समय तक समाज में ज्यादा लेन दन का प्रचार प्रसार नहीं होता था। उस समय लोग एक दूसरे से मिलकर ही बहुत खुश होते थे। वह खुशी ही उनका गहना थी। धीरे-धीरे समाज में आर्थिक वृद्धि होती गई। नई नई मशीनों की खोज होने लगी तकनीकी खोज होने लगी और आधुनिक मानव के आते आते लोगों में आर्थिक वस्तुओं का मोह बढ ने लगा।
फिर धीरे-धीरे समाज में दिखावा आ गया। लोग दिखावा करने के बहाने खोजने लगे और फिर उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ा चढ़ाकर खर्च करना शुरू किया। कुछ समय के बाद ऐसी रीत बन गई और धीरे धीरे सांस्कृतिक कार्यक्रम अत्यधिक महंगे हो गए और लोगों का चलन वही रहा।
इस कारण से कई बार लोग कम हैसियत वाले होते तो उस जगह उनके पास इतना धन या बल नहीं होता था कि वह सांस्कृतिक कार्यक्रम को अच्छे से कर पाए। उस दशा में लोगों ने एक दूसरे की मदद करना शुरू किया और उसी मदद को लोग आज तक भी निभा रहे हैं। हालांकि समय के साथ-साथ पैसे की अधिक अहमियत बढ़ गई है। लेकिन फिर भी गांव में अगर हम देखेंगे तो सब वही का वही है। लोग एक दूसरे की मदद आज भी करना चाहते हैं जबकि शहरों में यह एक अलग level पर पहुंच गया है।
मेरा विचार यह है कि अगर कोई व्यक्ति किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम को अच्छे से कर पाने में असमर्थ है तो उसको लोग दिखावा करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं करना चाहिए या फिर करें तो इतना करें जितनी उसकी खुद की हैसियत हो।
लेकिन मैं आप सबको सुझाव यही देना चाहूंगी कि अगर मैं आपकी हैसियत में है तो आपको सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लेनदेन कर लेना चाहिए। क्योंकि उसमें कोई बुराई भी नहीं है। अगर आप किसी चीज के अंदर अधिक समर्थ हैं तो किसी असमर्थ व्यक्ति को कुछ देने में कोई बुराई नहीं है।
Conclusion:
हालांकि पारिवारिक उत्सव पूरे परिवार को एक साथ जोड़ने के लिए होते हैं। उनका लेने देने से कोई मतलब नहीं होता। लेकिन फिर भी अगर कोई व्यक्ति अधिक समर्थ नहीं है किसी भी पारिवारिक कार्यक्रम को पूरा करने में। तो उसकी मदद करने में कोई भी बुराई नहीं है। हां अगर वह समर्थ है तो इस विचार पर दोबारा से सोचा जा सकता है।
दोस्तों उम्मीद करती हूं आज की जानकारी आपको पसंद आई होगी ऐसी ही ज्ञानवर्धक और महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए आप हमारी website पर आए।
दोस्तों आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।।