आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास जानकारी जो
आपके लिए है बेहद जरूरी और इंटरेस्टिंग!
दोस्तों आज मैं आपको बताने वाली हूं कि चाणक्य की राजा धनानंद से क्या दुश्मनी थी(What was the enmity of Chanakya with King Dhananand)?
दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य की मदद से राजा धनानंद की हत्या कर दी थी लेकिन क्या आपको पता है की चाणक्य की राजा धनानंद से क्या दुश्मनी थी।
आचार्य चाणक्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक के साथ-साथ चतुर और अर्थशास्त्री के रूप में भी जाने जाते हैं।
चाणक्य अर्थशास्त्र राजनीति के बहुत अच्छे ज्ञाता माने जाते हैं। आज मैं आपको चाणक्य के प्रति शोध से जुड़ी एक कहानी के बारे में बताऊंगी।
दोस्तों! क्या आप जानते हैं कि चाणक्य के पिता की मौत ही चाणक्य के प्रतिशोध की वजह बनी थी।
आज मैं आपको चाणक्य के प्रति शोध से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताऊंगी जिनको पढ़ना बहुत ही दिलचस्प होगा।
चाणक्य का जन्म तक्षशिला में हुआ था। इनके पिता चणक मुनि एक शिक्षक थे। इनके पिता ने इनका बचपन में नाम कौटिल्य रखा था। एक शिक्षक होने के नाते चणक मुनि अपने राज्य की रक्षा के लिए बहुत चिंतित थे।
यही कारण था कि चणक मुनि धनानंद जैसे क्रूर राजा की गलतियों और नीतियों के खिलाफ थे। चणक मुनि ने अपने मित्र के साथ मिलकर धनानंद जैसे क्रूर राजा को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई। योजना में असफल हो जाने पर धनानंद ने चणक मुनि और उनके मित्र को मौत की सजा सुनाई।
धनानंद ने जनक मुनि का सिर कटवा कर उसे मुख्य चौराहे पर लटकवा दिया था। अपने पिता की मृत्यु और अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए चाणक्य के हृदय में बदले की आग सुलग गई।
पिता की मृत्यु के बाद नन्हे कौटिल्य बिल्कुल बेसहारा हो गए थे। कौटिल्य ने अपने आप को संभाला और अपने पिता के कटे हुए सिर का और पिता के शरीर का अंतिम संस्कार किया।
इसके बाद चाणक्य ने अपने हाथ में पवित्र गंगाजल लेकर शपथ खाई कि "जब तक धनानंद के वंश का सर्वनाश नहीं कर देता तब तक पका हुआ भोजन ग्रहण नहीं करूंगा"। कौटिल्य ने यह शपथ निभाई भी।
चाणक्य की कड़ी प्रतिज्ञा राजद्रोह की ओर संकेत कर रहा था। हालांकि उन्हें इस बात का भी डर था कि कहीं क्रूर राजा उन्हें भी ना मरवा दे।
ऐसे में वह अपना घर बार छोड़कर जंगल की ओर चल पड़े।
चाणक्य जंगल में भागते-भागते थक कर मूर्छित अवस्था में पहुंच गए। तभी जंगल के मार्ग से एक संत गुजर रहे थे। उन्होंने मूर्छित अवस्था में चाणक्य को देखा। उन्होंने उस बालक को उठाकर उसका नाम पूछा।
चाणक्य ने धनानंद के डर से अपना नाम विष्णुगुप्त बताया। उस बालक की अवस्था को देखकर संत को दया आ गई। वह चाणक्य को अपने साथ ले गए। उसी संत ने चाणक्य को शिक्षा-दीक्षा प्रदान की।
अब कौटिल्य को विष्णुगुप्त के नाम से सब जानने लग गए। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से जल्द ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली। बाद में उनके निपुणता को देखकर उन्हें तक्षशिला का शिक्षक बना दिया गया।
उस समय तक्षशिला पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में मानी जाती थी। शिक्षक के पद पर रहते हुए विष्णु गुप्त अपनी बुद्धिमानी और कुशलता से पूरे तक्षशिला में प्रसिद्ध हो गए। उन्होंने सबके हृदय में जगह बना ली थी। उनके शिक्षा के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे।
चाणक्य को एक प्रकांड बुद्धिमानी दृष्टि से देखा जाने लगा। वहां के लोग उनकी बातों से बहुत प्रभावित होते थे।
इसी बीच सिकंदर ने पोरस के राज्य पर आक्रमण करके, उस क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। बाद में पोरस की किसी बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने उसका राज्य वापस कर दिया। मगर सिकंदर ने आक्रमण के दौरान बहुत भयानक तबाही मचाई थी। इस युद्ध में पोरस को जान-माल का नुकसान हुआ था।
सिकंदर एक बहुत अच्छा योद्धा था। सिकंदर के इस विनाशक तांडव से चाणक्य भलीभांति परिचित थे। इस कड़ी में दिलचस्प है कि पोरस पर अपना कब्जा करने की नियत से सिकंदर अब तक्षशीला की ओर बढ़ चुका था।
ऐसे में चाणक्य मगध चले गए। सिकंदर के भय से चाणक्य राज्य की चिंता सताये जा रही थी। शायद यही कारण था कि वे दुश्मन धनानंद के दरबार में बिन बुलाए मेहमान की तरह पहुंच जाते हैं।
वहां पहुंचकर वह राज्य की दयनीय स्थिति का समर्थन करते हैं। इसके बाद वे राजा धनानंद को सिकंदर के भारी उत्पात से आगाह करते हैं। चाणक्य, धनानंद को बताते हैं कि "महाराज दुश्मन मगध साम्राज्य की ओर बढ़ता आ रहा है"।
मगर भोग विलास में डूबा हुआ धनानंद चाणक्य की कोई बात नहीं सुनता है और चाणक्य का बहुत अपमान करता है। चाणक्य को तिरस्कृत करके महल से निकाल देता है।
पिता के हत्यारे से तिरस्कृत होना चाणक्य के लिए असहनीय हो गया था। ऐसे में उनके प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठती है। वह दुबारा धनानंद से बदला लेने के लिए प्रतिज्ञा लेते हैं। चाणक्य कसम खाते हैं कि जब तक बदला पूरा नहीं हो जाता तब तक मैं अपनी सिखा को नहीं बांध लूंगा।
इसके बाद वह अपने पिता के मित्र 'अमात्य सत्तार' से मिलते हैं। वे उनके साथ मिलकर राज्य में हो रहे अनैतिक कार्यों को लेकर मंत्रणा करते हैं।
उनके पिता के मित्र उन्हें बताते हैं कि राज्य की जनता धनानंद के गलत नीतियों से बहुत परेशान हो चुकी है तथा उनकी स्थिति दयनीय हो गई है। जनता से जबरदस्ती कर वसूली की जा रही है। निबंध वर्ग के लोगों का शोषण किया जा रहा है। इन सभी बातों से चाणक्य को बहुत ही आघात पहुंचता है।
ऐसे में दोनों धनानंद के शासन को उखाड़ फेंकने संकल्प करते हैं। चाणक्य अमात्य सत्तार से कहते हैं कि इस राज्य को चलाने के लिए एक ऐसे युवक की जरूरत है जिसमें राजा बनने के सभी गुण मौजूद हो।
तब सत्तार उन्हें धनानंद के दरबार में काम करने वाली एक दासी के बारे में बताता है जिसका नाम मोरा था। उसे दासी को भी धनानंद ने तिरस्कार कर के दरबार से बहार फिकवा दिया था। उसी दासी का 1 पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य है जिसमें शासक बनने के सभी गुण मौजूद हैं।
ऐसे में चाणक्य ने चंद्रगुप्त से मिलने की इच्छा जताई। फिर दोनों चंद्रगुप्त के घर जाते हैं व उनकी मां से मिलते हैं। चाणक्य चंद्रगुप्त के मां से कहते हैं कि आपके पुत्र में एक राजा बने के सभी गुण मौजूद हैं। उनकी मां चाणक्य की बातों से सहमत होती है।
चाणक्य चंद्रगुप्त को अपने साथ आश्रम में ले आते हैं। वे उन्हें उच्च शिक्षा देना प्रारंभ कर देते हैं। चाणक्य चंद्रगुप्त को धनानंद से बदला लेने के लिए हर प्रकार से तैयार करते हैं।
इस कड़ी में दिलचस्पी यह था कि चाणक्य ने चंद्रगुप्त की शक्तियों को बढ़ाने के लिए धर्म का सहारा लिया। वे अपना फिर से नाम बदल कर वात्स्यायन मुनि बन जाते हैं।
धर्म की आड़ में चाणक्य लोगों को अपना प्रवचन सुनाते और युवाओं को चंद्रगुप्त की सेना में जाने का सुझाव भी दिया करते थे। कुछ ही समय में चंद्रगुप्त की एक मजबूत सेना तैयार हो जाती है। इसी बीच एक अमात्य गुप्त चर द्वारा चाणक्य की साजिश का पता धनानंद को लगता है, परंतु आप बहुत देर हो चुकी थी।
चाणक्य द्वारा तैयार किए गए चक्रव्यूह में धर आनंद पूरी तरह से फंस गया था। चंद्रगुप्त अपनी बहादुर सेना के साथ मगध पर आक्रमण करने के लिए तैयार था।
ऐसे में भोग विलास में डूबे हुए धनानंद को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। वह चाणक्य की रणनीति के विरुद्ध कोई भी फैसला लेने में असमर्थ था। उनके नित्या धनानंद के गले में फांसी बन गई थी।
ऐसे में चाणक्य चंद्रगुप्त को मगध पर आक्रमण करने का आदेश देते है। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए चंद्रगुप्त मौर्य मगध पर आक्रमण कर देते हैं।
चंद्रगुप्त ने अपने कुशल नेतृत्व का प्रमाण देते हुए धनानंद व उसकी पूरी सेना को मौत के घाट उतार देता है। इस तरह चंद्रगुप्त चाणक्य के प्रतिशोध को पूरा करते हैं।
चाणक्य ने अपनी कुशल कूटनीति से धनानंद से बदला लेने में कामयाब हो जाते हैं। इसके साथ ही एक कुरूर और अत्याचारी राजा का अंत होता है।
कुशल रणनीतिकार और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य की नीतियों ने हमेशा ही समाज का मार्गदर्शन किया है। आचार्य चाणक्य ने बहुत सारी किताबें लिखी है उनमें से नीतिशास्त्र सबसे श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इसमें जीवन से जुड़ी गहराइयों के बारे में लिखा है।
दोस्तों उम्मीद करती हूं आपको आचार्य चाणक्य और धनानंद की दुश्मनी के बारे में पता चल ही गया होगा और साथ-साथ चंद्रगुप्त के इतिहास के बारे में भी आपको उचित जानकारी प्राप्त हो गई होगी। चंद्रगुप्त मौर्य ने कठोर अनुशासन व चाणक्य की नीतियों का पालन करते हुए धनानंद का वध किया और मगध का राजा बना उसने चाणक्य को अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त किया।
Conclusion:
राजा धनानंद ने चाणक्य के पिता की सिर काट कर हत्या करवा दी थी। उस समय चाणक्य की आयु बहुत छोटी थी। जब उसने शिक्षा ग्रहण की तो वह राजा धनानंद के पास गया राजा धनानंद ने उसे बेइज्जत करके महल से निकाल दिया। वहीं से चाणक्य ने अपनी बेइज्जती का बदला लेने की ठानी।
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आज की पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं एक और नई और रोचक पोस्ट के साथ है तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।