जेनेरिक दवाएं सस्ती क्यों होती है और जेनेरिक दवाएं सभी दवाइयों के दुकान पर उपलब्ध क्यों नहीं होती? -why generic medicines are cheap in hindi

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दोस्तों आज हम बात करेंगे जेनेरिक दवाएं(generic medicines) सस्ती क्यों होती है और वह सभी दवाइयों के दुकान पर उपलब्ध क्यों नहीं होती?

जेनेरिक दवाएं सस्ती क्यों होती है और जेनेरिक दवाएं सभी दवाइयों के दुकान पर उपलब्ध क्यों नहीं होती? -why generic medicines are cheap in hindi


दोस्तों आपको यह तो पता ही होगा कि जेनेरिक दवाएं हमेशा सस्ती होती है। तो चलिए आज के इस लेख में हम जानेंगे कि जेनेरिक दवाएं सस्ती क्यों होती है और वह सब Medical पर उपलब्ध क्यों नहीं होती!

दोस्तों जेनेरिक दवाइयां बिना brand की बनी हुई दवाइयां होती हैं और यह काफी असरदार होती हैं चाहे किसी भी बीमारी को आप ले सकते हैं। दोस्तों मैं आपको बता दूं कि जब किसी बीमारी का इलाज ढूंढ रहे होते हैं तो lab में एक प्रकार का salt तैयार किया जाता है और उसी salt या chemical से उस बीमारी के इलाज के लिए दवा बनाई जाती है।

जब यह दवाई तैयार होती है तो उसका एक खास जेनेरिक(generic) नाम रखा जाता है और यह एक समिति के द्वारा रखा जाता है।

दोस्तों नाम रखने के लिए समिति का उपयोग इसलिए किया जाता है ताकि यह पूरी दुनिया में उसी एक नाम से ही उपलब्ध हो सके। यानी अगर आप किसी मेडिकल स्टोर पर अमेरिका में भी यह दवाई लेने जाएंगे तो वहां भी वह उसी नाम से मिलेगी। इससे लोगों को भ्रम नहीं होगा या फिर लेने में दिक्कत नहीं होगी। 

अगर हम किसी और नाम से दवाई की branding हर जगह करेंगे तो हमें अन्य जगहों में वही same दवाई मिलने में दिक्कत होगी। इसीलिए इसका एक ही नाम रखा जाता है और वह एक ही समिति पूरी दुनिया में मिलने वाली सभी जेनेरिक दवाइयों(generic medicines) का नाम रखती है।

दोस्तों किसी भी शहर या Medical Store में यह दवाइयां अलग-अलग कीमतों पर मिलती हैं। कई जगहों पर तो उनके खास स्टोर होते हैं जहां पर सिर्फ जेनेरिक दवाइयां ही मिलती हैं लेकिन इन दवाइयो का अच्छे से प्रचार ने होने के कारण इनके बारे में कम ही लोग जानते हैं।

अब दोस्तों कम लोग ही जानकारी रखते हैं इसीलिए जब भी आप मेडिकल स्टोर पर दवाई लेने जाते हैं तो वह आपको Pharma की दवाई दे देता है ना कि जेनेरिक की। जबकि काम दोनों एक जैसा ही करती हैं। सिर्फ फार्मा की दवाई में ब्रांडिंग, एडवरटाइजमेंट, मार्केटिंग और अन्य दलाल जुड़े हुए होते हैं जिससे उस दवाई की कीमत बढ़ जाती है जबकि दोनों के salt में कोई भी अंतर नहीं है।

दोस्तों अगर मैं फार्मा और जेनेरिक दवाइयों की कीमत की बात करूं तो उनमें अगर दवाई जेनेरिक की है तो ₹10 की आएगी और अगर दवाई फार्मा में हो तो उसकी कीमत ₹100 तक हो सकती है।

दोस्तों इतनी ज्यादा लूट सिर्फ ब्रांडिंग, एडवर्टाइजमेंट और मार्केटिंग की है बाकी कोई भी फर्क दोनों दवाइयों में नहीं है। 

दोस्तों जेनेरिक दवाइयों की ब्रांडिंग ना होने के कारण और इनमें और बहुत ज्यादा खर्चे बच जाने के कारण ही यह दवाइयां सस्ती होती है। 

लेकिन दोस्तों ज्यादा लोग जेनेरिक दवाइयां नहीं खरीदते क्योंकि उनको पता नहीं होता की जेनेरिक और फार्मा में क्या अंतर है और वह सिर्फ मेडिकल स्टोर पर जाते हैं और दवाई डॉक्टर से लिखवा कर ले जाते हैं डॉक्टर और मेडिकल स्टोर वाला दोनों आपस में गठबंधन करके रखते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं लोगों को लूटते हैं और अपना घर भरते हैं।

दोस्तों जेनेरिक दवाइयों के सस्ता होने का एक कारण यह भी है कि इनका patent right किसी के पास नहीं होता जबकि फार्मा की दवाइयों का उनके ब्रांड के पास patent right होता है।

चलिए बात करते हैं पेटेंट राइट(patent rights) क्या होता है दोस्तों पेटेंट राइट(patent right) एक ऐसा राइट होता है जिसके द्वारा सिर्फ एक कंपनी ही एक उत्पाद का उत्पादन कर सकती है और अगर कोई और उसी उत्पाद को बनाता है तो वह कोर्ट में उसके खिलाफ केस फाइल कर सकती है।

चलिए बात करते हैं कि जेनेरिक दवाई सभी दवाइयों के दुकान पर उपलब्ध क्यों नहीं होती?(why does generic medicines not available in all medical stores in hindi)

दोस्तों इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है की जेनेरिक दवाइयों की मांग ही नहीं है क्योंकि उनमें बचत कम है और इसीलिए सभी मेडिकल वाले सिर्फ फार्मा दवाइयों को खरीदते हैं क्योंकि उनमें मोटा मुनाफा होता है।

दोस्त लोग भी जेनेरिक दवाइयों पर कम विश्वास करते हैं क्योंकि जब हम किसी चीज के लिए कम पैसा पे करते हैं या फिर हमें कोई चीज फ्री में मिल रही होती है तो हम उस चीज की कदर नहीं करते।

अगली चीज दोस्तों डॉक्टर भी इसका एक बड़ा कारण है क्योंकि डॉक्टर सिर्फ फार्मा की दवाई ही लिख कर देते हैं ताकि उनकी दुकानदारी चलती रहे और वह सब इंजेक्शन ऐसे ही लिखते हैं जो सिर्फ फार्मा में होते हैं या फिर जेनेरिक में उपलब्ध होते हैं लेकिन वह मेडिकल स्टोर पर मिलते नहीं।

अब दोस्तों अगर किसी गांव या शहर में सिर्फ एक ही मेडिकल स्टोर है या फिर दो-तीन मेडिकल स्टोर है लेकिन उनकी आपस में सांठगांठ है तो वहां जेनेरिक दवाइयां रखते ही नहीं ऐसे में लोगों को थक हार कर फार्मा की दवाइयां ही खरीदनी पड़ती है जो काफी महंगी होती हैं।

दोस्तों इसी दकियानूसी के कारण फार्मा इंडस्ट्री दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और जेनेरिक दवाइयों की वैल्यू कम होती जा रही है।

Conclusion:

दोस्तों जेनेरिक दवा हमें सस्ती समझ कर ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि काम नहीं करेगी दोस्तों जेनेरिक और फार्मा दोनों दवाई एक जैसी होती हैं। अगर हम मेडिकल स्टोर पर बार-बार जाकर जेनेरिक दवाओं की मांग करेंगे तो मेडिकल स्टोर वाली भी जेनेरिक दवाओं को रखने लगेंगे।

दोस्तों अगर आपने यहां तक पढ़ ही लिया है तो इसे शेयर भी कर दें मैं आपकी आभारी रहूंगी।

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आज की पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं एक और नई और रोचक पोस्ट के साथ है तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।

आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।

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