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मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!
दोस्तों आज हम आपके लिए कुतुब मीनार के बारे में कुछ बहुत ही रोचक तथ्य लेकर आए हैं। जिनकी जानकारी आपको होना बहुत जरूरी है तो दोस्तों पोस्ट में लास्ट तक बने रहे।
दोस्तों कुतुब मीनार जो इतिहास को बयां करती एक मीनार है।
इसी के साथ इसके निर्माण कार्य और निर्माण कुशलता ने भी दुनिया को हिला कर रखा है।
लेकिन दोस्तों क्या आपने कभी कुतुब मीनार के नजदीक जाकर एक चीज को ध्यान से देखा है? उसे महसूस किया है? कि इसके दरवाजों को हमेशा ही बंद क्यों रखा जाता है?
दोस्तो लगभग 27 साल पहले इन दरवाजों को खोल कर रखा जाता था लेकिन ऐसा क्या हुआ यहां पर कि इसे सरकारी तौर पर बंद करा दिया गया? और क्यों इसके इतिहास को लेकर इसके रहस्य को लेकर लोगों के दिलों दिमाग में असमंजस ही रहती है?
आइए दोस्तों आज हम इसके बारे में थोड़ा सा जानने की कोशिश करेंगे।
दोस्तों कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने साल 1192 में बनवाया था।
इस हिसाब से हम इसे 900 साल पुरानी इमारत कह सकते हैं।
लेकिन दोस्तों कई इतिहासकार इसे कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा बनवाया हुआ नहीं मानते और इसके सारे सबूत इतिहास के पुराने पन्नों में मिलते हैं।
दोस्तों कुतुब का अर्थ केंद्र बिंदु या खगोलिया अध्ययन या axis कहा जाता है इसलिए कुतुब मीनार का अर्थ खगोलिया मीनार जिसका इस्तेमाल खगोलीय अध्ययन करने के लिए किया जाता था।
लेकिन उस वक्त के किसी भी इतिहासकार ने कुतुबुद्दीन ऐबक की जीवनी में इसका उल्लेख नहीं किया।
दोस्तों इसके 400 साल बाद मुगल इतिहासकारों ने कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक से जोड़ा ऐसा ही दस्तावेजों में भी दिखाया गया है।
साल 2020 में कोर्ट में यह अर्जी दाखिल की गई कि इसके इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है क्योंकि इसमें बताए गए facts ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया।
दोस्तों मोहम्मद गोरी जो गजनी का सुलतान था उसने कुतुबुद्दीन को लाहौर का शासक बनाया था।
इतिहास में हमें बताया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान पर जीत करने के बाद कुतुबमीनार को विजय स्तंभ के रूप में बनवाया गया। लेकिन यहां पर एक सवाल आता है कि तराइन में विजय हुई वहां स्तंभ नहीं बनाया गया गजनी राजधानी थी वहां भी इसे नहीं बनवाया गया?
दोस्तों इसे दिल्ली में ही क्यों बनवाया गया और इसे तो मोहम्मद गोरी ने बनवाया था तो इसे कुतुबुद्दीन एबक के नाम से कुतुबमीनार क्यों कहा गया?
दोस्तों इस सवालों के जवाब किसी के पास नहीं है।
जब आप क़ुतुब मीनार को देखेंगे तो आपको उन पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं नजर आएंगी जिन को तोड़ा गया है और इन को तोड़ कर इतिहास से मिटाने की कोशिश की गई है लेकिन आज भी इनको देखा जा सकता है।
इन सबके बावजूद भी इसके अंदर जाने के रास्ते को बंद नहीं किया गया था।
दरअसल साल 1984 को सुबह के वक्त जब 400 लोग इसके अंदर थे जिसमें ज्यादातर स्कूल के बच्चे थे कुतुब मीनार के अंदर 379 सीढ़ियां हैं।
इसके अंदर कुछ बल्ब लगाए गए थे जो अचानक बिजली बंद होने के कारण भगदड़ मच गई इस भगदड़ में लगभग 45 लोगों की मौत हो गई।
इस हादसे के बाद से ही कुतुब मीनार के दरवाजों को बंद कर दिया गया।
उसके बाद रात को कुतुब मीनार के आसपास घूमने आए लोगों को इसके अंदर से चीखने की आवाजें सुनाई देती है।
कई पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर अनुभवी लोग यहां पर ऐसा एहसास होने का दावा कर चुके हैं।
इन facts से देखे तो इतिहास के कारण इन दरवाजों को बंद नहीं किया गया बल्कि एक हादसे ने ऐसा कर दिया।
दोस्तों कुतुब मीनार के इतिहास में बदलाव आया या नहीं इसका हम इतनी आसानी से पता नहीं लगा सकते क्योंकि इतिहासकारों के इस पर अलग-अलग मत हैं।
कुछ इसे ध्रुव स्तंभ कहते हैं जिसको कुतुबुद्दीन ऐबक से भी पुराना मानते हैं।
इस तथ्य का प्रमाण इस पर बनी हुई हिंदु कलाकारी देती है जिस पर श्री गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा बनी हुई है।
जबकि कुछ इतिहासकार इसे भारत की सभ्यता की झलक मानते हैं क्योंकि कहीं पर शेर की प्रतिमा बनी हुई है।
दोस्तों आपको क्या लगता है हमें कमेंट करके जरूर बताएं और आप कुतुबमीनार के बारे में क्या-क्या जानते हैं यह भी हमें जरूर बताएं आपके सुझाव से आप की जानकारी से हमें और अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है।
आशा करती हूं आज की जानकारी आपको पसंद आई होगी ऐसी ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर आए।
आज की पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं एक और नई और रोचक पोस्ट के साथ है तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
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