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मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!
तो आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास टॉपिक जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे!
दोस्तों आज हम आपको जैन धर्म से जुड़ी हुई कुछ खास बातें बताएंगे जिनके बारे में शायद ही आप जानते होंगे।
दोस्तों भारत के अद्भुत मुल धर्मों में से एक धर्म है जैन धर्म।
जैन धर्म का प्रारब्ध भगवान ऋषभदेव आदिनाथ से माना जाता है।
दोस्तों आपने कभी ना कभी ऐसे व्यक्तियों को सड़क पर चलते हुए देखा होगा जिनके शरीर पर कोई कपड़े नहीं होते यानी कि वह व्यक्ति नग्न अवस्था में रहते हैं।
क्या आप जानते हैं कि यह लोग कौन हैं?
चाहे ठंड का मौसम हो या चिलचिलाती गर्मी यह लोग कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं?
दोस्तों आप में से कई लोगों को यह मालूम होगा कि यह जैन धर्म के लोग हैं।
लेकिन आप में से कई लोगों को यह लगता होगा कि जैन धर्म के सभी लोग निर्वस्त्र रहकर जीवन यापन करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है जैन धर्म के सभी लोग निर्वस्त्र होकर नहीं जीते हैं।
तो अब यह सवाल उठता है कि यह निर्वस्त्र वाले लोग कौन है?
तो दोस्तों आज के लेख में हम इन्हीं लोगों के बारे में बता रहे हैं इसलिए लेट को पूरा पढ़ें।
दोस्तों जैन धर्म दो भागों में बटा हुआ है।
नंबर 1. दिगंबर।
नंबर 2. श्वेतांबर।
दोस्तों अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार था।
लगभग इसी समय मठों में बसने वाले जैन मुनियों में यह मत भेज शुरू हुआ कि तीर्थ करने वाले 3 जैन मुनियों की मूर्ति नग्न अवस्था में रखी जाएं या कपड़े पहना कर।
इस बात पर भी मतभेद था कि जैन मुनियों वस्त्र पहनना चाहिए या नहीं।
दोस्तों आगे चलकर जो है मत भेद और भी बढ़ गया।
पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनी 2 दलों में बट गए।
एक दल श्वेतांबर कहलाया इनके साथ में सफेद वस्त्र पहनते थे।
और दूसरा दल दिगंबर कहलाया जिसके साधु बिना कपड़ों के ही नग्न रहते थे।
दोस्तों माना जाता है कि दोनों संप्रदाय में मतभेद सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है।
दिगंबर आचरण पाल में ज्यादा कठोर हैं। जबकि श्वेतांबर
कुछ उदार हैं। श्वेतांबर समुदाय के व्यक्ति सफेद वस्त्र पहनते हैं जबकि दिगंबर मुनि नग्न रहकर साधना करते हैं।
लेकिन सफेद वस्त्र धारण करना है या निर्वस्त्र रहना है। यह नियम केवल मुनियों पर लागू होता है आम जैन धर्म के लोगों के लिए यह नियम नहीं है।
दोस्तों दिगंबर दिगंबर में तीन शाखाएं हैं।
300 साल पहले स्वेतांबरो में भी एक शाखा और जिसे स्थानकवासी कहते हैं यह लोग मूर्तियों को नहीं पूजते।
जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा बहुत मतभेद होने के बावजूद इस धर्म के सभी लोग महावीर जी की पूजा करने में तथा अहिंसा संयम में तथा अनेकांतवाद में सब का समान विश्वास है।
दोस्तों इतनी सारी बातों से आपको यह तो पता चल गया होगा कि जैन धर्म में दिगंबर मुनि निर्वस्त्र रहते हैं।
दोस्तों दिगंबर जैन मुनियों का मानना है कि उनके मन और जीवन में खोट नहीं है इसलिए उनके तन पर कपड़े नहीं है।
उनका मानना है कि आम लोग कपड़े पहनते हैं। लेकिन दिगंबर मुनि चारों दिशाओं को कपड़ों के रूप में पहन लेते हैं। उनका कहना है कि दुनिया में नग्नता से बेहतर कोई पोशाक नहीं है।
दोस्तों उनका मानना है कि यह बस्तर तो विकारों को ढकने के लिए होते हैं। जो विकारों से परे है ऐसे शिशु और मुनि को वस्त्रों की क्या जरूरत है।
इसके अलावा जब दिगंबर मुनि बूढ़े हो जाते हैं और खड़े होकर भोजन नहीं कर पाते हैं तो ऐसे में लोग अन्य जल का त्याग कर देते हैं।
दोस्तों आपको बता दें कि इस धर्म में खाना खड़े हो कर सेवन करना इस धर्म की खासियत मानी जाती है।
मान्यता यह भी है कि इस धर्म के लोग जमीन के नीचे उगने वाली सब्जी भी नहीं खाते हैं।
यह लोग उसी सब्जी का सेवन करते हैं जो जमीन के ऊपर उगती होती है।
इसके साथ ही दिगंबर मुनि दीक्षा के लिए संपूर्ण वस्त्रों का त्याग कर देते हैं और दिन में एक ही बार शुद्ध जल और शुद्ध भोजन का सेवन करते हैं।
इसके अलावा दोस्त तो सर्दियों में भी ओढ़ने बिछाने के कपड़ों का त्याग का पालन किया जाता है।
जैन धर्म में दीक्षा का अर्थ है समस्त समस्त कामनाओं की समाप्ति और आत्मा को परमात्मा बनाने के मार्ग पर चलना।
दोस्तों जैन धर्म और बौद्ध धर्म में बहुत ही समानता है लेकिन अब यह साबित हो चुका है कि बौद्ध धर्म की तुलना में जैन धर्म अधिक प्राचीन है।
जैन मुनियों का मानना है कि हमारे 24 तीर्थंकर हो चुके हैं।
जिनके द्वारा जैन धर्म की उत्पत्ति और उसका विकास हुआ।
दोस्तों जैन धर्म में तप की बहुत महिमा है।
इसके अलावा उपवास को भी एक तप के रूप में देखा गया है।
कोई भी व्यक्ति बिना ध्यान बिना अनशन और बिना तप किए अंदर से शुद्ध नहीं होता।
अगर वह स्वयं की आत्मा की मुक्ति चाहता है तो उसे ध्यान अनशन और तप करना ही होगा।
दोस्तों महावीर ने पूर्ण अहिंसा पर जोर दिया है और तब से ही अहिंसा परमो धर्म में जैन धर्म एक इंपॉर्टेंट सिद्धांत माना जाने लगा।
दोस्तों जैन धर्म के लोग अधिकतर व्यापारी वर्ग के हैं।
जैन धर्म का प्रचार सब लोगों के बीच नहीं हुआ़ क्योंकि इसके नियम कठोर थे।
मांस मछली और अंडे खाने पर जैन आपत्ती रखता है क्योंकि जैन धर्म में अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित है।
दोस्तों इसके बारे में आप हमें कोई भी सुझाव देना चाहे तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं हमें आपके सुझाव का इंतजार रहेगा इससे हमें और अच्छा आर्टिकल लिखने का मोटिवेशन मिलेगा।
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आज की पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं एक और नई और रोचक पोस्ट के साथ है तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।