किसी व्यक्ति के ईश्वर को मानने या न मानने से क्या होता है? क्या ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं?

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आज के टॉपिक का नाम है "साइंस बनाम भगवान"।
क्या ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं?

किसी व्यक्ति के ईश्वर को मानने या न मानने से क्या होता है? क्या ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं? 


यदि दुनिया में कुछ विषय विवाद और असमंजस के हैं तो यह भी एक विवाद से भरपूर विषय हम कह सकते हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि ईश्वर है तो कुछ मानते हैं कि नहीं है।

मनुष्य द्वारा बनाए गए सभी धर्मों में,सभी समाजों में ईश्वर,अल्लाह, गॉड के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है।

जिसने पृथ्वी, आकाश, समुद्र सभी जीव एवं वनस्पतियों की रचना की है और इसी कारण से हम यह मान बैठे हैं कि सभी रचनाओं के पीछे ईश्वर ही है।

हालांकि ऐसे किसी भी धर्म या रचना में भगवान के होने का कोई भी सटीक एवं कठोर प्रमाण नहीं मिलता।

परंतु फिर भी ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं क्योंकि हम बचपन से ही यह सभी चीजें सीखते और देखते आए हैं। इसलिए हमारी यह धारणा बन गई है कि ईश्वर होता है।

हिंदुओं के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश और मुसलमान के लिए अल्लाह, खुदा और क्रिश्चियन के लिए गोड के रूप में है।

हम सब ने अपने अपने नजरिए से ईश्वर को रंग-रूप, आकार, प्रकार के आधार पर उसको अलग-अलग नाम दे दिया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि भगवान ने हमें बनाया या हमने भगवान का आविष्कार किया।

अगर भगवान ने हम को बनाया तो भगवान को किसने बनाया। इस भगवान की हम पूजा अर्चना कर रहे हैं वह जीवित है भी या नहीं। यह सच कोई नहीं जानता।

एक तरफ हम कहते हैं कि ईश्वर सभी के दिलों में बसता है और दूसरी तरफ हम उसको थाल सजाएं मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च में ढूंढते फिरते हैं। अगर ईश्वर है और हमारे अंदर ही है तो "क्यों उसके दर्शन के लिए जगह-जगह हम भटकते रहते हैं"?

अगर इंसान ईश्वर की संतान है तो "क्यों ईश्वर ने सबको दर्शन नहीं दिए"?

"क्यों सबको बुद्धिमानी और ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती"?

क्या यह कहना उचित नहीं होगा कि यह अपनी ही संतानों के साथ भेदभाव हुआ है?

क्या हमें ऐसे भगवान की जरूरत है जो इंसान पर इंसान के द्वारा किए गए अत्याचारों को नहीं रोक सकता?

किसी व्यक्ति के ईश्वर को मानने या न मानने से क्या होता है? क्या ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं? 


क्या यह कहना बिल्कुल उचित नहीं होगा कि जिस सर्वशक्तिमान भगवान के सामने हम सर झुकाते हैं, पूजा करते हैं, उसकी आराधना करते हैं।

वो सिर्फ और सिर्फ लाचार एवं बेबस है जो सब कुछ देखता रहता है लेकिन करता कुछ नहीं है।

क्या हमने ऐसे भगवान की कभी कल्पना की है जो ताकतवर तो है किंतु कुछ कर नहीं सकता?

तो मैं ऐसे ईश्वर को क्यों मानूं जिसे मेरी प्रार्थना करने या ना करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जिस ईश्वर और भक्ति के नाम पर आज तक लोग आपस में लड़ते आए हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे।

तो क्या यह कहना उचित नहीं है कि जहां लोग ईश्वर के प्रति और धर्म के प्रति जितने कट्टर हैं उतनी ही वहां पर अराजकता है। 

यह बात हमें क्यों समझ में नहीं आती है की जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिसका कोई प्रमाण नहीं है उसको हम हर जगह क्यों ढूंढते फिरते हैं और उसके नाम से अराजकता और कट्टरता फैलाते हैं क्या यह मानवता के लिए घातक नहीं है?

अर्थात् हम भगवान के लिए उसको मार रहे हैं जिनका अस्तित्व इस दुनिया में है और जो जीवित हैं।

जब मैं लोगों को ईश्वर के नाम पर आपस में लड़ते हुए देखती हूं। तब यह विचार आता है कि सच में क्या ईश्वर इस दुनिया में है। अगर है तो वह ये सब क्यों नहीं रोकता?

अगर इतनी शिद्दत से ईश्वर इस सृष्टि की रचना कर सकता है तो धरती पर सुख शांति नहीं कर सकता। जहां लोगों के बीच आपस में प्रेम की भावना हो। एक ऐसा समाज जहां लोग एक दूसरे के धर्म और ईश्वर की पूजा अर्चना एवं श्रद्धा भाव रखते हो।

खैर अगर यह मान भी लिया जाए कि ईश्वर ने ही इस ब्रह्मांड की रचना की है तो यह सवाल भी उठना लाजमी है कि ईश्वर को किसने बनाया और ईश्वर कहां से आया?

क्या इस सवाल का सटीक एवं सही जवाब है मेरे विचार से नहीं।
अगर विशालकाय तारों से लेकर सूक्ष्म जीव तक का अंत निश्चित है तो प्रकृति के रचयिता का इनको बनाने के प्रति क्या उद्देश्य है। इस बात का भी कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।

चलिए आप जानते हैं की विज्ञान इस विषय पर क्या कहता है?

साइंस का अर्थ है व्यवस्थित ज्ञान यानी सिस्टमैटिक नॉलेज।

विज्ञान में केवल वही सिद्धांत माने जाते हैं जिनको सिद्ध किया जा सकता है या प्रमाणित किया जा सकता है।

जो सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टि से आगे चलकर गलत माने जाते हैं । उनको गलत सिद्धांत का करार दे दिया जाता है और उनको न अपनाने की सलाह दी जाती है।

वैज्ञानिक अनुसंधान एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें निरंतर शोध होते रहते हैं। विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को सिद्ध करके दिखाता है। आज हम जो कुछ भी है। वह विज्ञान की वजह से हैं।

विद्युत, हवाई जहाज, रेलवे और बीमारियों के लिए नई नई दवाओं का आविष्कार भी विज्ञान की मदद से ही संभव हो पाया है। आज विज्ञान ब्रह्मांड के रहस्य को जानने में लगा हुआ है। मानव जीवन को सुखमय एवं आरामदायक बनाने में अपना अहम योगदान निभा रहा है।

अगर विज्ञान की दृष्टि से देखें तो इस सृष्टि का यानी इस ब्रह्मांड का आविष्कार वैज्ञानिक सिद्धांत के द्वारा स्वत: ही हुआ है।

यह तो पता नहीं कि भगवान है या नहीं। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस ब्रह्मांड को बनाने में भगवान या ईश्वर की कोई भूमिका हमें दिखाई नहीं देती। हिंदू शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि भगवान शिव की उत्पत्ति स्वत: ही हुई है। इसीलिए उनको शिव शंभू एवं शिवजी कहा गया है।

वही कुरान में भी बिगबैंग जैसी घटना के होने के प्रमाण मिलते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ क्रिएशन यानी निर्माण यहां पहले से मौजूद है।

किसी व्यक्ति के ईश्वर को मानने या न मानने से क्या होता है? क्या ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं? 


तो क्या यह सिद्धांत बिल्कुल विज्ञान की दृष्टि में सटीक एवं सही जानकारी नहीं देता है मेरा जवाब है बिल्कुल देता है।

यहां तक इस लेख को पढ़ते-पढ़ते आपको हो सकता है। यह विचार आ रहा हो कि अगर ब्रह्मांड में ईश्वर की कोई निश्चित प्रतिमा मौजूद नहीं है तो इस संपूर्ण ब्रह्मांड को चला कौन रहा है?

अगर सारी वस्तुएं ब्रह्मांड में स्थित है तो ब्रह्मांड किस में स्थित है?
 
कुछ ऐसे ही बहुत से रहस्य है जिनका जवाब अब तक विज्ञान के पास नहीं है इसका मतलब यह हुआ कि ब्रह्मांड में ईश्वर मौजूद है? 

जी नहीं।  

किसी सवाल का जवाब न होने का मतलब यह नहीं है कि इसके पीछे भगवान ही है। इसका सिर्फ इतना मतलब है कि अभी तक विज्ञान उस रहस्य तक नहीं पहुंच पाया है। लेकिन आज नहीं तो कल जब भी विज्ञान को इस रहस्य का पता लगेगा तो वह इसका प्रमाण जरूर देगा।

आध्यात्मिक ज्ञान में हम सिर्फ बिना किसी प्रमाण के विश्वास करते हैं। जिसका हमें कोई अंदाजा नहीं होता कि वह चीज है भी या नहीं। हम सिर्फ उस पर बिना सोचे समझे विश्वास कर लेते हैं और मान लेते हैं। जो कि गलत है।

हर पल प्रकृति अद्भुत रचनाएं करती रहती है और इसी भांति मनुष्य भी अपने आरामदायक जीवन के लिए अलग-अलग कुछ ना कुछ करता रहता है। उनके बीच यह झूठ चलता रहता है और वह यह कि मनुष्य की समझ से परे कई पारलौकिक बातें है। जिनको मनुष्य आसानी से नहीं समझ पाता। उसे ईश्वर से जोड़ देते हैं।

आज हम मंगल ग्रह पर यान भेज रहे हैं लेकिन मांगलिक दोष से हमारा पीछा नहीं छूट रहा।

हम मंगल ग्रह पर आसानी से जा सकते हैं लेकिन यह ग्रह हम पर दुष्प्रभाव डालेगा। इसका कोई प्रमाण नहीं है यानी ये एक अर्थहीन बात है।

न जाने ऐसे कितने ही धागे आप बांधते एवं तोड़ते रहे हैं।
 
ईश्वर में विश्वास रखना यह एक आस्था का विषय है इसलिए इस पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता।

लेकिन अगर आप में विवेक है तो आप यह जरूर समझ गए होंगे कि अगर ईश्वर धरती पर मौजूद हैं तो हमें उन्हें मानना चाहिए। लेकिन यह बात बिल्कुल भी प्रमाणित नहीं है। इसलिए सोच समझकर ही इस बात पर विश्वास करें और अंधविश्वासों को बढ़ावा ना दें। विकासवाद की भावना रखें।

यह सब मेरे खुद के विचार है और अगर इस से आपका दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर दिया जाए। अगर आपको कुछ भी कहना है तो आप कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं आपका बहुत-बहुत स्वागत है।


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दोस्तों आज के लेख में बस इतना ही मिलते हैं ऐसी ही एक और रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ तब तक  अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई का विशेष ध्यान रखें धन्यवाद।

आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया

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