मन को शांत और स्थिर कैसे करें? - how to get peace of mind in hindi

हैलो दोस्तों कैसे हैं आप उम्मीद करती हूं आप सब अच्छे
और स्वस्थ होंगे।

thebetterlives.com में आपका स्वागत है।
मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।

दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!

तो आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास topic जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे!  

दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से अपने मन को शांत(peace of mind) और स्थिर कैसे करें?

मन को शांत और स्थिर कैसे करें? - how to get peace of mind in hindi


इसके बारे में जरूरी बातें बताएंगे तो आज का लेख आपके लिए बहुत ही खास है इसलिए लास्ट तक बने रहे।

दोस्तों मन ही मन को जानता, मन की मन से प्रीत, मन हीं मनमानी करें मन ही मन का मीत, मन् झूमे मन बावरा, मन की अद्भुत रित, मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

यह सच बात है जिसकी जैसी मति उसकी वैसी गति।
हम वह सब कुछ कर सकते हैं जो हम करना चाहते हैं
अगर हमारा मन हमारे control में है।

दोस्तों मन हमारे शरीर का वह हिस्सा है जो दिखाई तो नहीं देता लेकिन होता बहुत शक्तिशाली है।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, "यदि मन तुम्हारा स्वामी हैं और तुम उसके अधीन हो तो वह तुम्हें माया के बंधन में जकड़ कर रखेगा।"

और जब तुम मन पर काबू पा लोगे और उसके स्वामी बन जाओगे तो वही मन तुम्हें मोक्ष के द्वार तक ले जाएगा।

लेकिन दोस्तों मन को दास बनाना इतना आसान कहां है।
मन तो बंदर की तरह उछलता है कभी यहां और कभी वहां।
वह तो वही काम करता है जो उसको मना किया जाता है।

दोस्तों मन को समझने के लिए हम आपको एक छोटी सी कहानी बताते हैं:

एक धोबी(washer) था उसके पास एक बंदर(monkey) था, एक बकरी(goat) थी और एक गधा(donkey) था।

वह रोज गधे पर कपड़े लादकर उसको धोबी घाट ले जाता था और बंदर और बकरी को घर छोड़ जाता था।

दोस्तों जैसे ही धोबी बाहर निकलता बंदर(monkey) अंदर अपनी रस्सी खोलकर उछल कूद करने लग जाता। सामान को इधर-उधर फेंक देता और जो कुछ भी घर में खाने का सामान होता उसको खा जाता।

और वह बहुत ही चालाकी से धोबी के आने से पहले बकरी की रस्सी खोलकर और खुद को रस्सी से बांध लेता था।

और जब धोबी घर पर आता तो सारा सामान इधर-उधर बिखरा हुआ देखकर और बकरी को खुला हुआ देखकर वह बकरी को मारता। क्योंकि बकरी खुली हुई मिलती उछल कूद करता बंदर और मार पड़ती बकरी को।

बस दोस्तों यही बंदर है हमारा मन और बकरी है हमारा शरीर।

दोस्तों कंट्रोल में हमारा मन नहीं होता और भुगतना हमारे शरीर को पड़ता है।

अब सवाल यह उठता है कि यह बंदर हमारा मन जो उछल कूद करता रहता है बकबक करता रहता है उसको रोके कैसे?

कैसे हम अपने मन को काबू में करें?

कैसे रोकें उन विचारों को जो लगातार हमारे मन को भटकाते रहते हैं? हमारे मन में आते रहते हैं।

दोस्तों हमारे मन में 1 दिन में 60 से 80 हजार तक विचार आते हैं।
और अगर हम गौर करके देखेंगे तो इनमें से ज्यादातर विचार नकारात्मक(negative) और बेकार के होते हैं लगभग 95% विचार बेकार के होते हैं।

अब सवाल यह है कि इन्हें रोके कैसे? क्या इन्हें रोका जा सकता है?

दोस्तों अगर हम सामान्य स्तर पर बात करें तो विचारों को मन या मस्तिष्क में आने से रोका नहीं जा सकता।
हम इन्हें चाह कर भी रोक नहीं सकते क्योंकि मन में विचारों का आना तो स्वभाविक है।

जैसे शरीर में खून दौड़ता है और बाकी क्रियाएं होती है।
वैसे ही मन में विचार आते हैं।

लेकिन दोस्तों हम अपने विचारों को नियंत्रित जरूर कर सकते हैं।

और जब विचार नियंत्रित होंगे तो मन अपने आप स्थिर हो जाएगा और यह होता है अभ्यास से विचारों के प्रति साक्षी भाव से।

दोस्तों साक्षी भाव का अर्थ है हमें विचारों को देखना होगा
मन को खुद से अलग करके विचारों को देखना होगा मन से एक दूरी बनाकर।

दोस्तों अब आप सोच रहे होंगे कि हम अपने मन को अपने आप से अलग कैसे कर सकते हैं? आखिर मन तो हम ही हैं।

दोस्तों भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि हमारा शरीर एक रथ की तरह है और हमारी इंद्रियां उस रथ के घोड़े और उस रथ का सारथी है हमारा मन और उस रथ के स्वामी हैं हम यानी हमारी आत्मा।

अर्थात हम और हमारा मन अलग अलग है।
अपने मन से हम कभी भी दूरी बना सकते हैं और इसे नियंत्रित कर सकते हैं।

मन को शांत और स्थिर कैसे करें? - how to get peace of mind in hindi


आइए दोस्तों इसे हम एक उदाहरण के जरिए समझने की कोशिश करते हैं:

मान लीजिए हम एक हैवी ट्रैफिक जाम में फंसे हैं। तो हमें चारों ओर गाड़ियां ही गाड़ियां दिखाई देती है।

हमारे आगे और पीछे कितना बड़ा जाम लगा है और यह कितनी देर में क्लियर होगा इसका हम अंदाजा नहीं लगा पाते।

लेकिन अगर उसी वक्त हम कल्पना करें कि हम किसी ऊंची बिल्डिंग पर खड़े होकर उस ट्रैफिक जाम को देख रहे हैं तो हमें साफ साफ अंदाजा हो जाता है परिस्थिति का और हमें अंदाजा हो जाता है कि हमारी गाड़ी कहां है।

कितना लंबा ट्रैफिक है और कितनी देर लगेगी ट्रैफिक क्लियर होने में यह सब हम एक ऊंची बिल्डिंग पर खड़े होकर साफ-साफ देख सकते हैं।

ठीक उसी प्रकार दोस्तों हमें अपने विचारों से दूरी बनानी होगी और उन्हें देखना होगा अपने ही विचारों से हमें दूरी बनानी होगी।

हमें अपने विचारों को ठीक उसी प्रकार देखना होगा जैसे वह किसी और के हो ऐसा करने से कुछ ही समय में आप देखेंगे कि धीरे-धीरे विचार गायब होने लगेंगे।

अब आप सोच रहे होंगे कि देखने से भला विचार क्यों गायब होने लग जाते हैं?

दोस्तों जैसे मन का स्वभाव है विचारों को विचरने देना
ठीक इसी प्रकार विचारों की भी आदत होती है कि जब उन्हें देखा जाता है तो वह धीरे-धीरे गायब होने लगते हैं।

हमें कुछ नहीं करना है बस उन्हें देखना है। हमें यह अभ्यास रोज करना है सिर्फ अपने विचारों को देखना है और ऐसा करने से आप देखेंगे कि धीरे-धीरे आपके विचार कम होने लगे हैं और आपका मन शांत और स्थिर होने लगेगा।

चलिए आपको एक बहुत ही सुंदर कहानी और बताते हैं।

दोस्तों एक राजकुमार ने नया नया सन्यास लिया।

उसने गौतम बुद्ध से पूछा कि मैं आज कहां भिक्षा लेने जाऊं
तो गौतम बुद्ध ने उसे एक श्रविका के घर का पता दिया
और उसे वहां से भिक्षा मांगने को कहा।

शिष्य जैसे ही श्रविका के घर भोजन करने के लिए बैठा तो
वह बहुत चकित हुआ। क्योंकि जिस तरह के भोजन के बारे में रास्ते भर में उसके मन में जो विचार चल रहे थे वही भोजन श्रविका ने उसके आगे परोस दिया।

बिल्कुल वैसा ही भोजन देख कर उसको आश्चर्य तो बहुत हुआ लेकिन उसने सोचा कि यह एक संयोग ही होगा
यह सोचकर उसने भोजन कर लिया।

दोस्तों भोजन करने के बाद उसके मन में विचार आने लगे कि राज महल में तो भोजन करने के बाद थोड़ा विश्राम भी करता था लेकिन आज तो इतनी धूप में भोजन करने के तुरंत बाद जाना पड़ेगा।

दोस्तों वह यह सोच ही रहा था कि श्रवीका ने कहा भंते! भोजन के बाद तनिक विश्राम कर लेंगे तो बड़ी कृपा होगी।
भिक्षुक फिर हैरान हुआ कि मेरे मन के विचार श्रविका तक कैसे पहुंचे?

लेकिन उसने फिर से यह संयोग समझा श्रविका ने चटाई डाल दी और भिक्षुक आराम करने लेटा तो उसके मन में फिर विचार आने लगे कि कल राजकुमार था। आज भिक्षुक हूं कल कोमल सैय्या थी आज कठोर बिस्तर है। कल देखभाल के लिए आसपास सभी थे आज अकेला हूं।

दोस्तों श्रविका दरवाजे से लौट ही रही थी कि मुड़ कर फिर वापस लौटी और बोली भंते! यही तो जीवन है और परिवर्तन इसका नियम है और हम इस दुनिया में अकेले ही आए हैं और अकेले ही जाएंगे बाकी तो सब मोह माया है।

और यह सुनते ही भिक्षुक चौक कर उठा और इसको सहयोग मांनना उसके लिए मुश्किल था वह घबराया और वहां से तुरंत जाने की आज्ञा मांगने लगा।

दोस्तों वह भिक्षुक तेज कदमों से चलते हुए  गौतम बुद्ध के पास पहुंचा और उनसे बोला गुरु जी मैं अब वहां कभी नहीं जाऊंगा।

तो बुद्ध ने पूछा कि क्या हुआ क्या भोजन तुम्हें ठीक नहीं मिला?

क्या सम्मान में कोई कमी रह गई?
क्या श्रविका से  कोई भूल हो गई?

इस पर भिक्षुक ने कहा कि नहीं गुरु जी कोई भूल नहीं हुई कोई सम्मान में कमी नहीं हुई भोजन मेरी रूचि का था मेरी पसंद का था और सम्मान में भी कोई कमी नहीं हुई सम्मान भी मुझे बहुत मिला वह भंते कह कर मेरा आदर कर रही थी।

लेकिन कृपा करके  गुरु जी मुझे वहां दोबारा ना भेजें भिक्षुक हाथ जोड़कर गुरु जी से प्रार्थना करने लगा।

और उसने गुरु जी से कहा कि गुरु जी वह श्रविका तो विचार पढ़ लेती है इस पर गुरुजी ने कहा कि मैं जानता हूं ध्यान के प्रयोग से उसका मन शांत हो गया है।

अब वह दूसरों के मन के भाव का अनुभव कर लेती है।
इस पर शिष्य ने  घबराकर कहा कि तब तो गुरुजी उसने मेरे मन के सारे विचारों को पढ़ लिया होगा?

और आगे का शिष्य ने बताया कि जब मैं वहां पर भोजन कर रहा था तो उसको देखकर मेरे मन में कुछ गलत विकार भी उत्पन्न हुए थे और उसने तो उन विकारों को भी पढ़ लिया होगा?

और उसने शर्मिंदा होते हुए कहा कि मै क्या मूह लेकर उसके पास से जाऊंगा लेकिन बुद्ध ने कहा कि तुम्हें वहां भिक्षा लेने जाना ही होगा और तब तक जाना होगा जब तक तुम्हारा मन शांत नहीं हो जाता।

बुद्ध ने कहा कि यह तुम्हारी साधना का हिस्सा है तुम एक काम करना तुम्हारे मन में जो भी विचार उठें जो भी विकार उठे उन्हें सिर्फ देखते हुए जाना।

जो भी भाव आए काम आए क्रोध आए बस उसे देखते जाना और भीतर से पूर्ण सचेत रहना जैसे किसी अंधकार पूर्ण जगह में किसी ने दीपक जला दिया हो।

और दोस्तों यह सब सुनकर भिक्षुक को जाना ही पड़ा। उसके मन में भय था वह मन में बहुत डर रहा था कि पता नहीं क्या होगा।

लेकिन वह तो अभय हो कर लोटा!
कल डरा हुआ था आज नाचता हुआ लौटा।
और वह लोटते ही बुद्ध के चरणों में गिर गया और बोला कि धन्य हैं आप गुरुवर!

लेकिन यह कैसे हुआ?
आज जब मैं भीतर से सजग था तो मैंने पाया कि चारों तरफ सन्नाटा है।

आज जब मैं श्रविका  के घर की सीढ़ियां चढ रहा था तो मुझे सिर्फ अपने  श्वास की मालूम पड़ रही थी मुझे अपने ह्रदय की धड़कन सुनाई दे रही थी मैं सजग होकर साक्षी भाव से अपने विचारों को देख रहा था।

और मैंने देखा कि मेरे विचार धीरे-धीरे गायब होने लगे।
श्रविका ने जब मुझे भोजन दिया तो उसका एक एक निवाला मुझे अपने भीतर महसूस हो रहा था।

मैं हैरान था और मैंने महसूस किया कि मेरे भीतर धीरे-धीरे सन्नाटा होने लगा और अब वहां पर ना कोई विचार था और ना ही कोई विकार था सिर्फ शांति ही शांति थी।

दोस्तों इस पर महात्मा बुद्ध ने कहा कि जिस प्रकार किसी घर में प्रकाश हो उस घर में चोर नहीं आते।

ठीक उसी प्रकार जो भीतर से सचेत हैं जागा हुआ है साक्षी है उसके मन के द्वार पर बेकार के विचारों और विकारों का प्रवेश बंद हो जाता है और फिर मन धीरे-धीरे शांत होने लग जाता है स्थिर होने लग जाता है।

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आज की पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं एक और नई और रोचक पोस्ट के साथ है तब तक  अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।

आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
                          
                          





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