खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?

हैलो दोस्तों कैसे हैं आप! उम्मीद करती हूं आप सब अच्छे
और स्वस्थ होंगे।

thebetterlives.com में आपका स्वागत है।
मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।

दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!

तो आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास टॉपिक जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे! 

दोस्तों आज के लेख के माध्यम से हम शहीद खुदीराम बोस के जीवन परिचय के बारे में विस्तार से जानेंगे जो हमारे लिए जानना बहुत ही जरूरी और महत्वपूर्ण है। ऐसे महान इंसान के बारे में हम सबको जानना और समझना चाहिए और हमें उनकी आदतें अपनी लाइफ में उतारने चाहिए।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


दोस्तों शाहिद खुदीराम बोस ने 18 साल 8 महीने और 8 दिन की छोटी सी आयु में अपने प्राणों को मां भारती के ऊपर कुर्बान कर दिया जो हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गया था।

दोस्तों जिसने 1857 की क्रांति के लगभग 51 वर्ष बाद उन्नीस सौ आठ 1908 में बंगाल विभाजन के बाद सोए हुए भारत के
सोणीत में शोर्य का संचार किया।

दोस्तों ऐसे शहीद-ए-आजम खुदीराम बोस जिसको पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया नहीं गया, जिसके बारे में बताया नहीं गया।

दोस्तों 1949 में पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे तो मुजफ्फरनगर की जेल बिहार में जहां उनको फांसी दी गई। वहां पर एक सुमार्ग बनाने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू को लोगों ने आमंत्रित किया कि आप आइए।

उस क्रांतिकारी के सुमार्ग का आप शुभारंभ कीजिए ताकि क्रांतिकारियों को सम्मान मिले जिन्होंने आजादी दिलाई उनको सम्मान मिले।

तो दोस्तों पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहले हां कर दी और उसके बाद में मना कर दिया और उन्होंने कहा कि मैं गांधीवादी हूं खुदीराम बोस ने आतंकवादी का काम किया था और मैं ऐसे आतंकवादी और हिंसा वादी काम का समर्थन नहीं कर सकता।

दोस्तों हमें दुख है कि ऐसे लोग जिन्होंने क्रांतिकारियों का सम्मान नहीं किया। जिन्होंने क्रांतिकारियों को उनका श्रेय नहीं दिया या जिन्होंने क्रांतिकारियों को अपना आदर्श नहीं माना। उनको इस देश में 70 सालों तक सत्ताओं के शीर्ष पर बैठा कर रखा। आज देश में एक राष्ट्रवादी सरकार आई है।

दोस्तों आइए हम पहले बात करते हैं खुदीराम बोस जी के बारे में:

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


दोस्तों उनकी कहानी को पढ़ाया नहीं गया, उनकी कहानी के बारे में बताया नहीं गया। आज हम पूरे देश के प्रकाशनो को देख लेते हैं तो खुदीराम बोस के ऊपर अभी तीन चार वर्ष पहले एक पुस्तक आई है। उससे पहले कोई पुस्तक भी नहीं आई। उस पुस्तक में भी खुदीराम बोस जी के बारे में जानकारी बहुत कम दी गई है।

दोस्तों आइए उस खुदीराम बोस जी के बारे में आज हम विस्तार से जानते हैं:

दोस्तों खुदीराम बोस जी का जन्म 3 दिसंबर 1889 में पश्चिम बंगाल के मदीनापुर जिले के बहु मेनी नामक गांव में हुआ।

दोस्तों उनके पिताजी बाबू त्रिलोकीनाथ बॉस जी थे। उनकी माता का नाम श्री लक्ष्मी प्रिया जी था और उनके जो बाबू थे वह उनके क्षेत्र में जो रियासत थी उनके तहसीलदार थे। तो तहसीलदार होना क्या होता है यह आप समझ सकते हैं।

दोस्तों एक अच्छे और भले परिवार में उनका जन्म हुआ था।
दोस्तों खुदीराम बोस जी को बचपन से ही आजादी की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने बचपन से ही यह तय कर लिया था कि मुझे क्रांतिकारी बनना है।

उस समय लोकमान्य तिलक को 4 पेज का संपादकीय लिखने के कारण मांडलिक जेल में कारावास दिया था।
दोस्तो खुदी राम बोस को जब यह पता लगा तो उन्होंने जीवन में एक संकल्प लिया कि मुझे इसका बदला लेना है।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?



खुदीराम बोस के पिता अपनी नाराजोल स्टेट के तहसीलदार थे जैसा मैंने आपको बताया दोस्तों उनको जब कई वर्षों तक पुत्र नहीं हुआ।  तो उन्होंने काली माता की सिद्धेश्वरी देवी की 3 दिन तक लगातार पूजा की और तीसरी रात माता काली ने उनको सपने में दर्शन दिया। 

और उनसे कहा कि तुम्हें पुत्र मिलेगा और ऐसा पुत्र मिलेगा जो बहुत बड़ा काम करेगा यशस्वी होगा। लेकिन अधिक दिन तक जीवित नहीं रहेगा तो उस समय के रिवाज के हिसाब से बंगाल में एक प्रथा हुआ करती थी कि जब कोई छोटा बच्चा होता था और ज्योतिष के हिसाब से जब यह पता चलता था कि यह बच्चा ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रहेगा।

तो दोस्तों उस बच्चे को किसी दूसरे को बेच दिया जाता था। तो खुदीराम बोस की एक बड़ी बहन थी उसने तीन मुट्ठी चावल देकर उसको खरीद लिया और जिसके कारण उसका नाम खुदीराम पड़ा जिसका मतलब है खरीदा हुआ।

तो दोस्तों उसकी बहन ने उनके परिवार में एक रसम करने के लिए उसको खरीद लिया ताकि इसकी छोटी आयु में मृत्यु ना हो और इसकी आयु बढ़ जाए ऐसी वहां पर मान्यता थी।

दोस्तों 6 वर्ष की आयु में खुदीराम बोस के मां-बाप चल बसे थे। उनकी एक बहन थी उसकी शादी हो गई थी जिसका नाम था अपरुपा देवी। वह खुदीराम बोस को अपने साथ अपने ससुराल ले गई। उसके बहन का भी एक बेटा था जो खुदीराम बोस का हम उम्र था।

दोस्तों उनके कमलुक शहर के हैमिल्टन स्कूल में वह दोनों पढ़ने लगे। खुदीराम बोस अब 12 साल के हो चुके थे। खुदीराम बोस का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उनके अंदर एक विशेष क्रांतिकारी के गुण थे और स्कूल में भी वह एक ऐसे छात्र के रूप में जाने जाते थे जिनके अंदर कष्ट सहन करने की अपूर्व क्षमता थी।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


दोस्तों उनके स्कूली जीवन के बारे में हमें पता लगता है कि वह बड़े निडर थे और वह खेल-खेल में जंगल में चले जाते थे और जंगल में से सांपों को पकड़ लाते थे। वह थोड़ी सी देर सांपों के साथ खेलते  और फिर वापिस जंगल में छोड़ आते थे।

दोस्तों एक बार वह अपने बच्चों के साथ शरारत कर रहे थे और वह एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गए। ऊंचे पेड़ पर चढ़ने के बाद वहां से कूद पड़े और कूदने के बाद उनको काफी चोट आई और उनके कपड़े भी फट गए।

फिर उन्होंने देखा कि उनके टीचर भी वहा आ गए हैं और टीचर को देखकर उन्होंने अपने दुख और तकलीफ को अंदर ही अंदर पी लिया और टीचर के सामने उन्होंने ऐसा दिखाया कि हम तो खेल रहे थे और हमें किसी प्रकार की चोट नहीं लगी।

दोस्तों खुदीराम बोस बहुत ही दयालु थे। जब 6 साल की उम्र में उनके माता-पिता गुजर गए थे तो उनके पिता को जो उस समय उनकी स्टेट थी जहां पर वह तहसीलदार थे। वहां के राजा ने उनकी शादी में एक पशमीना शाल दिया था।

दोस्तों उनके घर के पास एक भिखारी रहता था। उस भिखारी को एक दिन उन्होंने जब सर्दी में ठिठुरते हुए देखा और उन्होंने देखा कि इसके पास ओढ़ने के लिए कपड़ा नहीं है। तो उन्होंने वह बेशकीमती पश्मीना शाल ले जाकर उस भिखारी को दे दिया। जब वह शाल लेकर जा रहे थे तो उनकी दीदी ने देखा कि यह साल भिखारी को देने के लिए जा रहा है।

तो दोस्तों उनकी दीदी ने कहा कि खुदीराम तुम इस साल को भिखारी को मत दो और इसकी जगह तुम कोई दूसरा कपड़ा भिखारी को दे दो। क्योंकि वह इस शाल को बेच देगा तो उसने कहा कि नहीं मैं यही शाल भिखारी को दूंगा। अगर वह इसको बेच देगा तो कोई बात नहीं उसको कुछ पैसे मिल जाएंगे। लेकिन मुझे उसकी सहायता करनी है।

दोस्तों और खुदीराम बोस के अंदर क्या गुण थे आइए जानते हैं
 
दोस्तों जहां पर वह पढ़ते थे वहां कमलुक शहर में है वहा हैजा फैला तो हैजे में बहुत सारे लोग मारे गए। तो उस हैजे में खुदीराम बोस अपनी जान की परवाह ना करते हुए रोगियों की सेवा करते थे।

दोस्तों जब हैजे की बीमारी फैली हुई थी तो खुदी राम बोस के दोस्तों ने कहा कि लोगों को श्मशान में बहुत दफनाया जा रहा है और यहां पर भूत रहने लगे हैं इसलिए अब वहां पर कोई नहीं जा रहा है। 

तो खुदीराम बोस ने कहा कि मैं जाता हूं और खुदीराम बोस खुद श्मशान घाट में गए और वहां से पेड़ की टहनी तोड़ कर लाए। तो दोस्तों बचपन से ही खुदीराम बोस की यह आदत थी कि कोई भी बहादुरी का काम करना हो तो वह हंसते-हंसते करते थे।

और वह कभी भी उस काम से पीछे नहीं हटते थे और इसी बात को सिद्ध करने के लिए वह रात को श्मशान घाट में गए और वहां से टहनी तोड़ कर लाए और उन्होंने सिद्ध किया कि उन्हें किसी भी भूत-प्रेत से डर नहीं लगता।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


और दोस्तों इसी तरह एक बार स्कूल के शिक्षक ने बच्चों से कहा कि चलो देखते हैं तुम सब में से हिम्मत वाला कौन है और उन्होंने आपस में शर्त लगाई मैज पर मुक्के मारने की कौन ज्यादा मुक्के मारेगा। तो सभी बच्चे 10, 12, 15 मुक्के मारकर थक गए।

लेकिन खुदीराम बोस 20, 25, 30 मुक्के मारने के बाद भी नहीं थके और उनके हाथ से खून निकलने लगा। फिर भी वह मेज पर मुक्के मारते गये इस पर उनके टीचर ने उनको रोका और कहा कि हम समझ गए हैं कि तुम बहुत बहादुर हो शोर्यवान हो और आगे चलकर तुम अपने देश का नाम रोशन करोगे।

दोस्तों ऐसे बहुत सारे बहादुरी के किस्से हैं जो खुदीराम बोस ने बिल्कुल हंसते हुए किये है।

दोस्तों एक बार जब वे स्कूल में पढ़ते थे तो वहां पर अरविंदो घोष का आना जाना लगा रहता था। भगिनी निवेदिता मदिनीपुर में कई बार गई वहां उनकी जनसभाएं होती थी क्रांतिकारियों के साथ। गोपनीय बैठक होती थी और दोस्तों खुदीराम बोस उन जनसभाओं में उन बैठकों में शामिल होते थे।

अरविंदो घोष को और भगिनी निवेदिता को लगातार सुनते रहते थे। दोस्तों इस बीच में एक बड़ी घटना कर्म हुई 1905 में। बंगाल का विभाजन हुआ बंगाल के विभाजन के समय आंदोलन चला। स्वदेशी का आंदोलन चला, लोकमान्य तिलक ने आंदोलन चलाया, वीर सावरकर ने आंदोलन चलाया।

दोस्तों उस समय खुदीराम बोस भी इस आंदोलन में शामिल हो गए और दोस्तों जब खुदीराम बोस उस आंदोलन में शामिल हुए तो उन्होंने बढ़-चढ़कर इस में भाग लिया। उस समय स्वदेशी को हीन दृष्टि से देखा जाता था तो उस समय उनके स्कूल का कोई एक बच्चा स्वदेशी धोती पहन कर आ गया यानी खादी की धोती। 

तो दूसरे बच्चे मजाक उड़ाने लगे उस बच्चे का जिसने स्वदेशी धोती पहनी हुई थी तो खुदीराम बोस ने जिस बच्चे का स्वदेशी धोती पहनी हुई थी उस बच्चे का पक्ष लिया और कहा कि स्वदेशी धोती और वस्त्रों को पहनना गर्व की बात है और जो स्वदेशी पहनेगा हम उनको बचाएंगे और उनका साथ देंगे।

दोस्तों स्वदेशी के गौरव को खुदीराम बोस ने उसी वक्त महसूस कर लिया था जब वह उम्र में छोटे थे।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


दोस्तों जब वग्ं भंग हुआ तो लोकमान्य तिलक वीर सावरकर की प्रेरणा से स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ। उसी समय बंगाल के एक और क्रांतिकारी थे हेमंचंद्र कानूनगो।

दोस्तों वह जमीदार थे 1896 में उन्होंने अपनी सारी संपत्ति बेच दी और सारी संपत्ति बेच कर वह यूरोप में चले गए और यूरोप में पेरिस में जाकर वह श्यामजी कृष्ण वर्मा और मैडम वीकेजी गामा से मिले और वहां जाकर उन्होंने 174 पेज का बम बनाने का मैन्युअल लेकर आए।

दोस्तों उस समय तक क्रांतिकारियों के पास बम की टेक्नोलॉजी नहीं होती थी और क्रांतिकारियों को यह लगता था कि अंग्रेजों को यदि भगाना है तो उसका मुकाबला हम तलवार से नहीं कर सकते। उसके लिए तो हमें बम बनाना सीखना पड़ेगा।

दोस्तों आज के जमाने में कहें तो यूं समझ सकते हैं कि किसी देश में जो बड़े-बड़े समूह हैं।  वह सोचते हैं कि किसी तरह हमें परमाणु बम मिल जाए, मिसाइल मिल जाए, तो उस समय आज की मिसाइल आज के समय में परमाणु बम बनाने की जो टेक्नॉलॉजी है।

दोस्तों इस प्रकार उस समय बम बनाने की टेक्नोलॉजी थी तो 174 पेज का बम बनाने का मैनुअल लेकर और बम बनाना सीख कर हेमचंद्र कानूनगो और कुछ क्रांतिकारी पेरिस से वापस आए थे।

तो दोस्तों खुदीराम बोस ने एक बार जब वह छोटे थे तो हेमचंद्र कानूनगो जब पेरिस से वापस आए तो बंगाल की सड़कों पर मदिनीपुर की सड़कों पर जब जा रहे थे। तो उन्होंने उसका रास्ता रोक लिया और कहा कि हेमचंद्र जी आप मुझे पिस्तौल दो मैं अंग्रेजों को मारूंगा।

अब दोस्तों हेमचंद्र कानूनगो मैनुअल लेकर आए थे लेकिन वह गुपचुप तरीके से काम करते थे और यह सुनकर वह हक्के बक्के रह गए और सोचने लगे कि यह छोटा सा बच्चा मेरे सामने आकर कहता है कि पिस्तौल दो यह कितना बड़ा निडर और बहादुर बच्चा है।

तो दोस्तों उन क्रांतिकारियों ने उस बच्चे की परीक्षा ली और शपथ दिलवाई और लहू के साथ उसका तिलक किया गया और उसे संकल्प दिया गया कि क्रांतिकारीयो का काम करते हुए वह कभी भी विचलित नहीं होगा और क्रांतिकारियों की जो गुप्त चीजें हैं वह किसी को बताएगा नहीं।

दोस्तों इस समय कोलकाता में प्रेसिडेंसी कॉलेज के जो केमिस्ट्री विभाग है। उसमें उल्लासकार दत्त नाम के एक और विद्यार्थी थे दोस्तों उल्लास कार दत्त भी बहुत बड़े क्रांतिकारी थे। जिनके बारे में पढ़ाया नहीं गया उनका जो युवांतर संगठन था। उसमें जो बम बनाने का काम था उनको उसका प्रभारी बनाया गया।

दोस्तों अरविंदो जी के साथ उन्होंने बम बनाने का प्रशिक्षण देने का स्कूल खोला मदिनापुर शहर में।

लोगों ने संकल्प लिया कि बंगाल का यह जो विभाजन किया गया है। जब तक इसको वापस नहीं ले लेते है तब तक हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे।

दोस्तों खुदीराम बोस उस समय नौजवानों की तलाश में रहते थे। नौजवानों की मीटिंग करते थे गांव गांव में जाते थे। नौजवानों को समझाते थे उस समय उनके थैले में सिर्फ तीन पुस्तकें रहती थी।

दोस्तों एक तो भागवत गीता, स्वामी विवेकानंद जी की पुस्तकें
क्रांतिकारियों की जीत जीवनी रहती थी और उस समय सखारामदेव, गणेश और देवशिखर नाम के हमारे एक बुद्धिजीवी भी हुए हैं। क्रांतिकारी जिन्होंने देशेर कथा के नाम से बांग्ला भाषा में एक पुस्तक भी लिखी थी।

दोस्तों जिसमें बताया गया था कि आजादी का क्या मतलब है और कैसे अंग्रेजो ने हमारे भारत को गुलाम बना कर रखा है तो इस तरह लगातार फरवरी 6 से लेकर दिसंबर 1907 तक लगातार स्वदेशी का प्रचार प्रसार चलता था।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


दोस्तों वहां पर मदीनापुर में एक शिव मंदिर है उस शिव मंदिर में खुदीराम बोस अपने बहन के बेटे के साथ घूमने के लिए गए थे और वहां जाकर उन्होंने देखा कि मंदिर के अंदर बहुत ज्यादा भीड़ लगी थी और उसने अपनी बहन के बेटे से पूछा कि यहां पर इतनी ज्यादा भीड़ क्यों लगी है।

तो दोस्तों उन्होंने देखा कि लोग जमीन पर लेट कर जैसे दंडवत प्रणाम करते हैं। उस प्रकार जमीन पर लेट कर लोग यात्रा कर रहे थे। तो उन्होंने अपनी बहन के बेटे से पूछा कि यह लोग इस तरह लेटकर जात्रा क्यों कर रही हैं।

दोस्तों खुदीराम बोस की बहन के बेटे ने बताया कि यहां पर उल्टे लेट करें। इस तरह दंडवत करके जो भी मनोकामना मांगी जाती है। जो भी इच्छा भगवान भोलेनाथ के सामने मांगी जाती है। भोलेनाथ उस इच्छा को पूरी कर देते हैं।

दोस्तों उस दिन खुदीराम बोस भगवान शिव के मंदिर के सामने लेट गए और पूरे 24 घंटे तक लेटे रहे दोस्तों जंगल के अंदर मंदिर था। वहां पर बिच्छू कनखजूरा सांप आदि जीव-जंतु भी रहते थे और इन सब के बावजूद वह 14 घंटे तक इस तरह लेट कर परिक्रमा करते रहे भगवान भोलेनाथ की आराधना करते रहे।

और दोस्तों जब हेमचंद्र कानूनगो और उनके परिवारजनों को इस बात का पता लगा तो उन्होंने सोचा कि खुदीराम बोस 24 घंटे से गायब है कहीं दिखाई नहीं दे रहा है और उन्होंने ढूंढने की कोशिश की तो उनको पता चला कि यह तो शिव मंदिर के अंदर हैं।

और जब वह मंदिर के अंदर गए तो उन्होंने देखा कि खुदी राम बोस तो उल्टे लेटे हुए हैं। उन्होंने उसे उठाया और कहा कि तुम् कौन सी  इच्छा पूरी करवाने के लिए भगवान शिव शंकर के सामने दंडवत प्रणाम और परिक्रमा कर रहे थे।

दोस्तों उसने जवाब दिया कि मैं देश को अंग्रेजों से आजाद करवाना चाहता हूं। इसलिए मैं भगवान शंकर के सामने दंडवत प्रणाम और परिक्रमा कर रहा था।

दुनिया भगवान के सामने मांगती है कि हमें धन संपत्ति मिले, विद्या मिले, नौकरी मिले, हमारी शादी हो, हमारे बच्चे हो, और हमारा जीवन सुखमय हो।

दोस्तों खुदीराम बोस की बचपन से यही इच्छा थी कि मेरा जीवन देश के लिए है और मैं जो भी करूंगा अपने देश के लिए ही करूंगा और यदि मैं देश को आजाद करवा पाया तो यह मेरा सबसे बड़ा काम होगा।

दोस्तों खुदीराम बोस भागवत गीता को हमेशा पास में रखते थे देशभक्ति की पुस्तकें पास में रखते थे।

दोस्तों इटली के दो क्रांतिकारी हुए हैं:

नंबर 1. गैरीबाल्डी।
नंबर 2. मैजिनी।

दोस्तों लाला लाजपत राय ने मैजिनी और गैरीबाल्डी जी जीवनी लिखी है।
दोस्तों लाला लाजपत राय से पहले बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों ने मैंजिनी और गैरीबाल्डी जी की जीवनी का अनुवाद किया।

दोस्तों खुदीराम बोस हमेशा अपने थैले में मैजिनी और गैरीबाल्डी जी की जीवनी रखते थे। दोस्तों यह जो मैजिनी नहीं और गैरीबाल्डी जी हैं यह कितने बड़े क्रांतिकारी हैं आइए आपको बताते हैं:

दोस्तों यह इतने बड़े क्रांतिकारी हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी इन से प्रेरणा लेते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ने अपनी बेटी का नाम अनीता रखा क्यों?

क्योंकि अनीता गैरीबाल्डी जी के परिवार से उसके परिवार के एक सदस्य का नाम था।

तो दोस्तों इतने बड़े क्रांतिकारी थे मैंजीनी और गैरीबाल्डी जी उनकी पुस्तकें खुदीराम बोस हमेशा अपने थैले में रखते थे और खुदीराम बोस क्योंकि वह ब्रह्मचारी थे। लगातार योग करके, प्राणायाम करके, एक्सरसाइज करके उन्होंने अपने शरीर को बहुत मजबूत बना लिया था।

दोस्तों शरीर को मजबूत बनाकर उन्होंने लाठी चलाना सीख लिया था बम बनाने के साथ-साथ।

एक बार दोस्तों उनके गांव के पास के गांव में कुछ लट्ठेत यानी लाठी चलाने वाले थे कुछ मुस्लिम लठेत थे तो उन्होंने खुदीराम बोस को चुनौती दी कि हमसे कोई लाठी चलाने में जीत नहीं सकता इसलिए हम तुम्हें चुनौती देते हैं।

खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?


तो दोस्तों खुदीराम बोस ने कहा कि चलो मैं तुमसे मुकाबला करता हूं तो उन्होंने सोचा कि यह छोटा सा बच्चा है। यह हमसे क्या मुकाबला करेगा। हम तो इसको चुनौती भी नहीं दे पाएंगे। यह हमसे क्या मुकाबला करेगा 

इस पर खुदीराम बोस ने कहा कि पहले तुम मुकाबला तो करो। फिर देखते हैं कौन कितना भारी पड़ता है और दोस्तों खुदीराम बोस ने देखते ही देखते उन चारों लठेतो को अकेले ही धूल चटा दी थी।

दोस्तों 1906 में मदीनीपुर में एक और घटना हुई क्रांतिकारियों का अड्डा सत्येंद्रनाथ बॉस के नाम से एक और क्रांतिकारी थे जिनकी हैंडलूम की फैक्ट्री थी। वह क्रांतिकारियों का स्थान था क्रांतिकारी वहां पर अपने गुप्त सभा किया करते थे।

गुप्त मीटिंग करते थे और इसके साथ-साथ मदिनीपुर में ही सत्येंद्र नाथ बोस के घर के पास एक काली माता का मंदिर था। वहां पर नौजवानों की काउंसलिंग की जाती थी। उनका ब्रेनवाश किया जाता था और उनकी काउंसलिंग और ब्रेनवाश करने के बाद रक्त से यानी उनके हाथ को कट करके उस रक्त से तिलक करवाया जाता था।

और संकल्प दिलवाया जाता था कि क्रांति के काम में वह कभी भी कायरता का साथ नहीं देंगे और कभी भी इस रास्ते से विचलित नहीं होंगे और कोई भी दुख आये, तकलीफ आए, बाधा आए, उनका हंस कर सामना करेंगे।

दोस्तों ऐसे ही 1906 में फरवरी के महीने में मदीना पुर में एक इंडस्ट्रियल उद्योगीक और एग्रीकल्चर की प्रदर्शनी अंग्रेजों ने लगाई हुई थी।

दोस्तों आसपास के प्रांतों से बहुत सारी भीड़ वहां पर आई हुई थी। तो क्रांतिकारियों ने सोचा कि यहां पर हम अपने मत का प्रचार प्रसार करते हैं तो क्रांतिकारियों ने सोनारबंगला के नाम से एक पत्र छपवाया था।

दोस्तों उस पत्र में क्या लिखा था:-

बंगाल का विभाजन अंग्रेजों ने क्यों किया?
अंग्रेजों ने कैसे बंगाल को लूटा?
भारत के पैसे से कैसे इंग्लैंड में धन-संपत्ति आ रही है?
इंटेक्सरिलाइजेशन आ रहा है? औद्योगिक क्रांति आ रही है? तो यह सब लिखा हुआ था उस पत्र में।

तो दोस्तों उस समय क्रांतिकारियों के पास सोशल मीडिया नहीं था जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, टि्वटर और भी ऐसे बहुत सारे ऐप जो आज के दिन अवेलेबल है।

क्रांतिकारी बहुत मुश्किल से कोई पत्र छपवा पाते थे और उस पत्र को बांटने के लिए वह अपनी जान भी दांव पर लगा देते थे।

तो दोस्तों वह औद्योगिक मेला जो चल रहा था उसमें सत्येंद्र नाथ बोस का जो सोनार बांग्ला पत्र था उसको बांटने की जिम्मेदारी उन्होंने खुदीराम बोस को दी।

दोस्तों थोड़ी देर में पुलिस  को पता लग गया पुलिस वालों ने खुदीराम बोस को पकड़ने की कोशिश की तो खुदीराम बोस ने पुलिस वाले की नाक पर घुस्सा मारा और उसकी पिटाई की और वहां से भाग गए।

अब दोस्तों कुछ समय के बाद लोगों ने शिकायत करी और खुदीराम बोस को पकड़ लिया गया। खुदीराम बोस को पकड़ने के बाद उनको कई महीने की सजा दी गई।

दोस्तों सजा भुगतने के बाद खुदीराम बोस फिर जेल से बाहर आए और जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने फिर वही पत्र बांटने शुरू कर दिए और फिर 1907 में खुदीराम बोस ने नारायण रेलवे स्टेशन के ऊपर एक ट्रेन की बोगी उड़ाने की योजना बनाई। दोस्तों इस के बारे में कभी बताया नहीं जाता है।

खुदीराम बोस और क्रांतिकारियों ने उस समय का जो बंगाल का गवर्नर होता था उन्होंने सोचा कि बंगाल का जो विभाजन हुआ है उसमें गवर्नर का सबसे बड़ा हाथ है।

और यदि हम बंगाल के गवर्नर को मार देते हैं तो यूरोप तक इसकी गूंज सुनाई देगी।

तो दोस्तों उन्होंने बंगाल के गवर्नर को मारने के लिए एक बोगी को उड़ाने की योजना बनाई। उन्होंने बम से हमला किया दोस्तों उनका दुर्भाग्य देखिए जिस बोगी में गवर्नर को होना था गवर्नर ने बोगी को चेंज कर लिया और वह दूसरी बोगी में था और क्रांतिकारियों का प्रयास सफल नहीं हो पाया।

दोस्तों उस समय किंग्सफोर्ड नाम का एक जज था जो मदीनापुर में कार्य करता था। उसने अरविंदो घोष को सजा देने का कार्य किया और इसके साथ साथ वह जब भी कोई क्रांतिकारी आता था तो उस को कड़ी से कड़ी सजा देता था।

दोस्तों वह अंग्रेजों का बहुत बड़ा पिट्ठू था वह अंग्रेजी ही था और वह क्रांतिकारियों से बहुत घृणा करता था और क्रांतिकारियों या उनके बच्चों के खिलाफ कोई भी शिकायत आती थी तो उनको वह कड़ी से कड़ी सजा देता था। तो क्रांतिकारियों को यह लगता था कि इसे किंग्सफोर्ड से हमें बदला लेना है।

तो दोस्तों उस समय जब खुदीराम बोस को जेल से छोड़ा गया तो खुदीराम बोस का पूरे जिले में जुलूस निकाला गया। खुदीराम बोस ने बम बनाना सीख लिया था।

दोस्तों किंग्सफोर्ड क्रांतिकारियों को सजा देता था। उस समय जो युगानतर छपता था वंदे मातरम छपता था।

संध्या शक्ति छपता था उसके संपादकों को, उसके लेखकों को, उसके पत्रकारों को और कोई उस अखबार को बांटता भी था तो उस अखबार को बांटने वालों में यदि कोई बच्चा भी यदि पकड़ा जाए तो उसको भी कोड़े लगाने की सजा देता था और जेल में डाल देता था।

भयंकर यातनाएं देता था तो इन सारे कार्यों को करते हुए किंग्सफोर्ड हमारे क्रांतिकारियों के टारगेट पर था कि किंग्स फोर्ड को हमें किसी भी तरह से मजा सिखाना है।

तो दोस्तों किंग्स फोर्ड को मारने के लिए उस समय क्रांतिकारियों में एक पार्सल में बम भेजा और सोचा कि वह जैसे ही पार्सल खोलेंगे तो बम फटेगा।

दोस्तों किंग्स फोर्ड के नाम पार्सल भेजा गया खुदीराम बोस और क्रांतिकारियों ने।

दोस्तों किंग्स फोर्ड की जगह पार्सल उनके किसी दूसरे व्यक्ति ने खोला और क्रांतिकारियों की यह योजना भी निष्फल हो गई।

अब अंग्रेजों को पता लग गया था कि किंग्स फोर्ड की जान को खतरा है। क्योंकि किंग्स फोर्ड अंग्रेजों का हिमायती और यह क्रांतिकारियों के निशाने पर है।

तो दोस्तों किंग्स फोर्ड का तबादला मदीना पुर से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कर दिया। उसके बाद वहां के क्रांतिकारियों ने निर्णय लिया कि हमें तो क्रांतिकारियों से बदला लेना है और बदला लेने के लिए उन्होंने प्रफुल्लचा नाम के एक क्रांतिकारी और खुदीराम बोस की इन दोनों की ड्यूटी लगाई कि यह दोनों वहां मुजफ्फरपुर में जाएंगे।

किंग्स फोर्ड की रेकी करेंगे और रेकी करने के बाद या तो कोर्ट में, या उसके घर में, या वह कहीं जाता है तो उसकी हत्या करेंगे और भारत के अपमान का बदला लेंगे।

अरविंदो घोष के अपमान का बदला लेंगे क्रांतिकारियों के अपमान का बदला लेंगे और अंग्रेजों के यूरोप तक उनके ब्रिटेन तक हम यह संदेश देंगे कि अब भारत के अंदर आप लोगों का रहना सुरक्षित नहीं है खतरे से खाली नहीं है।

अब दोस्तों खुदीराम बोस और प्रफुल्लचा की ड्यूटी लगाई गई प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस मुजफ्फर पूर शहर में पहुंचे और वहां पर पहुंच कर उन्होंने एक धर्मशाला में कमरा लिया।

और दोस्तों वहां रहकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की रेकी करना शुरू किया और वह उनके कोर्ट में गए और कोर्ट में उनको देखा उनकी दिनचर्या को देखा और जब उन्होंने देखा कि शाम को किंग्सफोर्ड जो अंग्रेजों का एक क्लब बना हुआ था उस क्लब में रोज जाते हैं।

उसकी जो बग्गी थी उसको उन्होंने देख लिया और बम बना कर उन्होंने तैयारी कर ली कि आज शाम को जब किंग्स फोर्ड शाम को क्लब में जाएगा और शाम को जब अंधेरा हो जाएगा और जब वह 8:00 से 8:30 के बीच में घर को निकलेगा तो हम बग्गी के ऊपर बम फेकेंगे और किंग्स फोर्ड को मार देंगे।

दोस्तों 30 अप्रैल 1908 उन्नीस सौ आठ को दोनों बहार निकले और किंग्स फोर्ड की घोड़ा गाड़ी की राह देखने लगे।

इस बीच पुलिस के गुप्तचरो ने उनको देख लिया और उन्होंने उन को टालना चाहा और वह उनकी नजरों से बचते हुए एक बार वहां से हट गये लेकिन कुछ देर के बाद दोबारा वहां क्लब के पास आ गए।

और दोस्तों कुछ देर के बाद उन्होंने वहां से एक बग्गी को निकलते हुए देखा और उन्होंने सोचा कि इसमें जरूर किंग्सफोर्ड होगा और उन्होंने उस बग्गी पर बम फेंक दिया और उन्होंने सोचा कि बग्गी के अंदर जरूर किंग्स फोर्ड होगा और आज उसका काम तमाम हो गया होगा

और बम फेंकने के बाद उन्होंने देखा कि बम की आवाज 3 मील तक सुनाई दी है और उन्होंने देखा कि पूरा शोर मच गया है। पुलिस वहां पर आ गई है तो फिर प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस दोनों अलग-अलग दिशाओं की ओर चले गए।

दोस्तों प्रफुल्ल चाकी अलग दिशा में चले गए और खुदीराम बोस अलग दिशा में चले और खुदीराम बोस लगातार 24 मील यानी 36 किलोमीटर तक चल कर बेनी रेलवे स्टेशन पर जाकर उन्होंने विश्राम किया।

और दोस्तों वहां पर वह  एक दुकान पर गए और जब दुकान पर जाकर उन्होंने बात करते हुए उनको पता चला कि किंग्स फोर्ड मरा नहीं है तो अचानक उनके मुंह से निकल गया क्या?? किंग्स फोर्थ मरा नहीं है?

तो दोस्तों वहां पर पुलिस के कुछ सिपाही बैठे हुए थे कुछ गुप्तचर बैठे हुए थे उन्होंने खुदीराम बोस को पकड़ लिया और खुदीराम बोस ने भी भागने की कोशिश नहीं करी खुदीराम बोस को पकड़ने के बाद उस को कोर्ट में पेश किया गया।


और दोस्तों जब उस को कोर्ट में पेश किया गया तो वकील कालिदास बसु ने कहा कि मैं आपकी पैरवी करूंगा। इस पर खुदीराम बोस ने कहा कि मुझे किसी की पैरवी की कोई जरूरत नहीं है। मैं तो हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमने के लिए ही इस क्रांतिकारी पथ पर आगे बढ़ा हूं।

तो दोस्तों जब वकील कालिदास ने कहा कि इससे तुम्हें फांसी की सजा हो सकती है तो खुदीराम बोस ने कहा कि प्राचीन काल में जो राजपूत औरतें होती थी वह जलती हुई चिता की आग में बिना डरे घुस जाती थी।


जिस तरह जोहर करती थी हमारी वीरांगनाएं वैसे ही निर्भीकता के साथ मैं अपनी शहादत दूंगा और खुदीराम बोस ने कहा कि मैं फांसी से डरता नहीं।

दोस्तों फिर भी खुदीराम बोस के क्रांतिकारियों ने एक वकील को खड़ा किया और जज के सामने खुदीराम बोस को पेश किया गया और जब जज के सामने खुदीराम बोस को पेश किया गया तो खुदीराम बोस डरे नहीं और जब वह डरे नहीं तो और जब वह लगातार बात करते रहे और उनको फांसी की सजा सुना दी गई।

तो दोस्तों लास्ट में उन्होंने कहा कि जज साहब में कुछ कहना चाहता हूं तो जज साहब ने कहा कि तुम इतने छोटे से बच्चे हो फिर तुमने कैसे बम बनाया?

तो दोस्तों खुदीराम बोस ने कहा कि जज साहब अगर आप मुझे 2-3 दिन का टाइम दे तो मैं आपको भी बम बनाना सिखा सकता हूं। दोस्तों खुदीराम बोस ने जज से कहा कि जज साहब आप मुझे मौका दें तो मैं बम बनाने की टेक्निक सिखा सकु।

दोस्तों खुदीराम बोस की योजना थी कि इस समय कोर्ट में पत्रकार मौजूद हैं, आम जनता मौजूद हैं तो यदि कोर्ट में मुझे मौका मिले कि कैसे बम बनाया जाता है तो हेमचंद्र कानूनगो को पेरिस जाना पड़ा, विद्यालय चलाना पड़ा बम बनाने का।

मैं यदि बम बनाने की टेक्निक कोर्ट में बताता हूं तो पत्रकार अखबार में छापेंगे और सारे देश के नौजवानों तक बम बनाने की टेक्निक पहुंच जाएगी यह योजना खुदीराम बोस की थी।

दोस्तों अंग्रेजों का जज समझ गया कि मैं यदि इस को कोर्ट में बोलने का मौका दूंगा तो यह बम बनाने की टेक्निक सार्वजनिक कर देगा और इससे अंग्रेजों का नुकसान होगा!

इसलिए दोस्तों  उसने उसको मौका नहीं दिया और उसको सीधा जेल भेज दिया।

दोस्तों 11 अगस्त के दिन खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई।

फांसी की सजा सुनाकर जब उनको फांसी के फंदे पर ले जाया गया तो हंसते-हंसते उन्होंने फांसी के फंदे को चूमा।

और उन्होंने फांसी के फंदे को चूम कर अंत में कहा कि मैं
अपनी दीदी के नाम, अपनी मौसी के नाम एक संदेश देना चाहता हूं और उन्होंने अपनी दीदी के नाम एक संदेश दिया कि मैं 18 महीने बाद दोबारा जन्म लूंगा और अपनी मौसी के घर में जन्म लूंगा और अगर तुम मुझे पहचान नहीं पाओ तो मेरे गले के ऊपर फांसी के फंदे का निशान मिलेगा।

दोस्तों खुदीराम बोस की शहादत से क्या हुआ कि जब खुदीराम बोस की शहादत का अंतिम जुलूस निकला तो हजारों लोगों की भीड़ उनके पीछे थी और जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तो सब ने अपने घर से हाथी दांत की डब्बी लाकर ताबीज लाकर खुदीराम बोस की राख को उस में भर लिया।

उन्होंने कहा कि हम खुदीराम बोस की राख का बना ताबीज अपने बच्चों को पहनाएंगे ताकि वह भी खुदीराम बोस की तरह ही बहादुर बने।

दोस्तों खुदीराम बोस की शहादत के बाद हजारों लोगों का जुलूस निकला और इसके बाद बंगाल के जो बुनकर थे जो जुलाहे थे उन्होंने ऐसी धोती बनाना शुरू किया जिसकी किनारी के ऊपर खुदीराम बोस लिखा होता था।

और दोस्तों उस धोती को बंगाल के युवाओं ने गर्व के साथ पहनना शुरू किया कि यह स्वदेशी धोती है और यह खुदीराम बोस के नाम की धोती है।

तो दोस्तों इतना बड़ा व्यक्तित्व, इतने बड़े क्रांतिकारी खुदीराम बोस थे।

और जब मुजफ्फरपुर की जेल में उनको 11-8-1908 (ग्यारह अगस्त उन्नीस सौ आठ) को फांसी की सजा दी गई।

तो 1908 में ही मुजफ्फरपुर से दूर 11 साल का एक छात्र जो उस समय उड़ीसा में था सुभाष चंद्र बोस वह बहुत उदेलित हुआ प्रभावित हुआ और उसने अपने कमरे में खुदीराम बोस कि जो अखबारों में फोटो छपी थी। वह सभी फोटो काटकर अपने कमरे में सब जगह पर लगा दी।

दोस्तों 11 साल के सुभाष चंद्र बोस के ऊपर इतना प्रभाव पड़ा कि उस ने संकल्प लिया कि जैसे खुदीराम बोस ने अपने प्राणों की आहुति देश के लिए दी है वैसे ही मैं अपने प्राणों की आहुति अपने देश के लिए दूंगा।

तो दोस्तों इतना महान व्यक्तित्व खुदीराम बोस का था।

क्या आपको कभी खुदीराम बोस के बारे में कहीं से कोई जानकारी मिली?

क्या आपने किसी पाठ्यपुस्तक में पढ़ा?

क्या आपने कोई मूवी देखी?

क्या आपने कभी किसी कांग्रेसी नेता को खुदीराम बोस का नाम लेते हुए देखा या सुना?

दोस्तों ना हमें खुदीराम बोस के बारे में पढ़ाया गया और ना हमें उसके बारे में बताया गया।

दोस्तों यदि देश के नौजवानों को खुदीराम बोस के बारे में पढ़ाया जाए बताया जाए तो आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे व्यक्तित्व अपने भारत की भूमि पर पैदा हो सकते हैं।

दोस्तों खुदीराम बोस के बारे में जो आज हमने आपको जानकारी दी है वह हमने कई सारी पुस्तकों में से इकट्ठा करके आपके सामने इस लेख के माध्यम से देने की कोशिश करी है।

दोस्तों आशा करते हैं आपको पसंद आई होगी ऐसी ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर आए

दोस्तों आज के लेख में इतना ही मिलते हैं एक और नई जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ से सफाई बनाए रखें धन्यवाद।

आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।।

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4 टिप्पणियाँ

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  1. उत्तर
    1. जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। वेबसाइट पर आते रहे और इस लेख को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। मैं आपकी आभारी रहूंगी

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  2. उत्तर
    1. आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद शेयर करना ना भूले

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