हैलो दोस्तों कैसे हैं आप! उम्मीद करती हूं आप सब अच्छे
और स्वस्थ होंगे।
thebetterlives.com में आपका स्वागत है।
मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!
तो आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास टॉपिक जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे!
दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि हमें भक्ति किस उम्र में करनी चाहिए? क्या युवावस्था में भक्ति करना सही है?
जी हां दोस्तों इस टॉपिक पर आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
तो आइए दोस्तों जानते हैं भक्ति करने की सही उम्र क्या है?
दोस्तों किसी जिज्ञासु ने यह प्रश्न किया है कि भक्ति किस उम्र में करनी चाहिए?
दोस्तों हमारे सिद्ध मुनियों के अनुसार भक्ति का अर्थ होता है जुड़ना।
अब जुड़ना किससे?
खुद से जुड़ना।
खुद से जुड़ना, स्वयं से जुड़ना ही भक्ति है।
और स्वयं से टूटना विभक्ति है।
तो दोस्तों हम तो विभक्त ही है। आज मनुष्य स्वयं से विभक्त ही तो है। आज मनुष्य दुनिया को जानता है और जानने में लगा हुआ है लेकिन स्वयं को नहीं जानता। स्वयं को जानने का प्रयास नहीं करता। स्वयं से जुड़ने का प्रयास नहीं करता।
वह जगत से जुड़ने का प्रयास करता है लेकिन स्वयं से जुड़ने का प्रयास नहीं करता।
इसका परिणाम यह होता है कि वह अशांत और दुखी रहता है।
दोस्तों आप देखेंगे कि अक्सर लोग यह कहते हैं कि भक्ति बाल्यावस्था में प्राप्त करने की बात आती है तो कहते हैं कि अभी तो खेलने कूदने की उम्र है।
यह बाल्यावस्था है यह कोई भक्ति करने की उम्र थोड़ी ही है। मां-बाप अपने बच्चों को खुद मना कर देते हैं।
माता-पिता ही अपने बच्चों को मना कर देते हैं कि छोटी उम्र में भक्ति करने का टाइम नहीं होता यह तो खेलने कूदने की उम्र होती है।
और जब इंसान युवावस्था में आता है तब बोलते हैं कि यह कोई भक्ति करने की उम्र थोड़ी है।
यह उम्र तो धन, दौलत, वैभव, नाम, शौर्य, कमाने की है भक्ति करने की थोड़े हैं।
यह समय तो संसार में धन इकट्ठा करने का है, वैभव इकट्ठा करने का है भक्ति करने का यह सही समय नहीं है ऐसा भी लोग बोलते हैं।
और जब वह समय आता है जब व्यक्ति वृद्ध हो जाता है बिल्कुल बूढ़ा हो जाता है।
और दोस्तों तक वह सोचता है कि अब भक्ति करें फिर वह क्या भक्ति करेगा फिर तो कुछ बचा ही नहीं। उसने तो सारी जिंदगी अपनी धन कमाने में यश कमाने में खेलने कूदने में ऐसे इधर-उधर पूरी कर दी।
अब दोस्तों वह कैसे भक्ति करेगा क्योंकि भक्ति के लिए शक्ति की जरूरत होती है और शक्ति तो अब वृद्ध अवस्था में इंसान में बचती ही नहीं है।
जब शक्ति थी तब हमने भक्ति करी ही नहीं।
हम स्वयं से जुड़े नहीं और अब शक्ति नहीं है तो हम भक्ति करने चले हैं।
दोस्तों हमें बाल्यावस्था से युवा अवस्था और युवावस्था से वृद्ध अवस्था में पहुंचते-पहुंचते हम लोगों को बहुत सारे विषय विकार घेर लेते हैं और जब यह विषय विकार हमको जकड़ लेते हैं तो भक्ति हो पाना, भक्ति की राह पर चल पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
दोस्तों जब हमारा शरीर शक्तिहीन हो जाता है उस अवस्था में अगर हम भक्ति करने बैठते हैं तो हम क्या भक्ति करेंगे! उस समय हमें क्या परमात्मा याद आएगा उस समय तो हमें सिर्फ डॉक्टर और दवाइयां ही याद आएंगी।
दोस्तों हमारी नस नस में दर्द हो रहा है। सारे जोड़ दर्द कर रहे हैं शरीर हमारा काम नहीं करता है कानों से हमें सुनाई नहीं देता आंखों से हमें दिखाई नहीं देता जुबान हमारी बोलते हुए लड़खड़ाने लगी है, पैरों से हम खड़े नहीं हो सकते, हाथों को हम हिला नहीं सकते ऐसी अवस्था में हम क्या भक्ति करेंगे बताओ आप?
ऐसी अवस्था में आप भक्ति करेंगे तो भक्ति में ध्यान नहीं लगेगा, आप साधना करेंगे तो साधना में ध्यान नहीं लगेगा, आप भजन करेंगे तो भजन में ध्यान नहीं लगेगा।
दोस्तों जब हमारा शरीर स्वस्थ है हट्टा कट्टा है हम चल फिर सकते हैं तभी हम भक्ति कर सकते हैं। स्वयं से जुड़ सकते हैं, स्वयं को जान सकते हैं।
क्योंकि दोस्तों उस वक्त है हमारा पूरा ध्यान हमारी भक्ति पर हमारी साधना पर होता है ना कि हमारे दर्द और तकलीफ पर। क्योंकि हम पूरी तरह से स्वास्थ हैं इसलिए हमें किसी प्रकार का दर्द या तकलीफ हमारे शरीर में नहीं है। ऐसे में हम भक्ति साधना अच्छी तरह से कर सकते हैं और उसमें हमारा मन लगता है।
दोस्तों सत्य तो यह है कि महापुरुषों ने भक्ति कब की है और कब करनी चाहिए। इस बात पर अगर हम दृष्टि डालेंगे तब हमें समझ आएगा कि भक्ति करने का सही समय क्या है और सही उम्र क्या है?
तो चलिए दोस्तों भक्तों की लिस्ट पर एक नजर डालते हैं:-
नंबर 1. प्रहलाद।
दोस्तों भक्त प्रहलाद ने कब भक्ति करी, किस उम्र में भक्ति करी?
क्या उन्होंने बुढ़ापे में भक्ति करी?
क्या उनकी भक्ति बुढापे की भक्ति थी?
जी नहीं दोस्तों उन्होंने अपनी उम्र के प्रथम पड़ाव में यानी कि बाल्यावस्था में ही भक्ति करनी प्रारंभ कर दी थी।
और उन्होंने भक्ति करके परमात्मा को प्राप्त किया था।
इसके बारे में हम सभी भली प्रकार जानते हैं।
नंबर 2. ध्रुव।
दोस्तों ध्रुव की क्या उम्र थी?
क्या उन्होंने बुढ़ापे में भक्ति करी थी?
जी नहीं दोस्तों भक्त ध्रुव ने बचपन में ही भक्ति करी थी और अपनी भक्ति के प्रताप से उन्होंने परमात्मा को प्राप्त किया था यह भी हम सब अच्छी तरह से जानते हैं।
नंबर 3. मीरा।
दोस्तों क्या मीरा ने बुढ़ापे में भक्ति करी थी?
जब मीरा ने भक्ति करना शुरू किया तो उसकी उम्र क्या थी?
दोस्तों हम सभी जानते हैं कि मीरा ने भी बाल्यावस्था से ही भक्ति को शुरू किया था।
और अपने सच्चे प्रेम से अपनी सच्ची भक्ति से उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को पाया था।
यह भी हम सभी भली प्रकार जानते हैं।
नंबर 4. सतगुरु कबीर।
इन्होंने भी बाल्यावस्था में ही भक्ति करी और परमात्मा को पाया था।
नंबर 5. रविदास जी।
इन्होंने भी अपनी उम्र के पहले पड़ाव से ही भक्ति को प्रारंभ किया और परमात्मा की प्राप्ति करी।
नंबर 6. गुरु नानक देव।
गुरु नानक देव के जीवन परिचय के बारे में भी आप सभी अच्छी प्रकार जानते होंगे उन्होंने भी बचपन से ही भक्ति प्रारंभ की थी।
नंबर 7. गुरु गोविंद सिंह जी।
दोस्तों बचपन से ही भगवान में रुचि रखने वाले और अपनी सच्ची लगन और भक्ति से भगवान को प्रसन्न करने वाले गुरु गोविंद जी भी बचपन से ही भगवान के भक्त रहे थे।
नंबर 8. संत सूरदास जी।
दोस्तों संत सूरदास जी बचपन से ही नेत्रहीन थे जिन्होंने संसार को ना देख कर सिर्फ भगवान को ही अपने मन की आंखों से देखा था संसार के लिए उन्होंने अपने नेत्र बंद कर रखे थे और अपने मन की आंखों से वह भगवान के दर्शन करते थे उनकी भक्ति करते थे।
और दोस्तों अंत में स्वामी विवेकानंद जी।
दोस्तों भारत में भी अगर देखें तो स्वामी विवेकानंद जीवित उदाहरण है हमारे पास।
जिन्होंने बुढ़ापे में भक्ति नहीं करी बल्कि बचपन से ही बाल्यावस्था से ही भक्ति करी थी। इसलिए उन्होंने भक्तों की लिस्ट में स्थान पाया।
दोस्तों ऐसे बहुत सारे संत महात्मा हुए हैं जिन्होंने बचपन से ही, बाल्यावस्था से ही, अपनी उम्र के पहले पड़ाव से ही भक्ति और साधना को आरंभ किया था और अपनी सच्ची लगन और सच्ची भक्ति से भगवान को प्राप्त किया था परमात्मा को प्राप्त किया था।
दोस्तों जीवन की तीन अवस्थाएं होती हैं।
नंबर 1. बाल्यावस्था।
नंबर 2. युवावस्था।
नंबर 3. किशोरावस्था।
दोस्तों हमें भक्ति इन तीनों अवस्थाओं में ही करनी चाहिए।
इन्हीं तीनों अवस्थाओं में ही भक्ति की जा सकती है।
वृद्धावस्था में आप भक्ति नहीं कर सकते क्योंकि आप शक्तिहीन हो जाते हैं।
हमें भक्ति के रास्ते पर बाल्यावस्था से ही चलना शुरू कर देना चाहिए जैसे-जैसे हम इस रास्ते पर आगे बढ़ते जाएंगे वैसे-वैसे हमारी भक्ति और हमारी साधना गहरी और मजबूत होती जाएगी और अगर हम भक्ति को बाल्यावस्था से ही साथ लेकर चलेंगे तो हमारे आस पास कोई विकार नहीं आएंगे।
दोस्तों भक्ति करने का मतलब यह नहीं है कि आप सारे काम सारी जिम्मेदारियों को छोड़कर भक्ति करने बैठ जाओ। आप अपने निजी कामों को करते हुए अपने बिजनेस को अपनी नौकरी को अपने परिवार को संभालते हुए भी भक्ति कर सकते हैं।
भक्ति का मतलब हमने आपको पहले ही बता दिया है कि भक्ति का मतलब होता है खुद को जानना।
दोस्तों जब हम वृद्ध अवस्था में भक्ति करने बैठते हैं तो भगवान भी हमारा साथ नहीं देते क्योंकि यहां हम पैसे गिनने के चक्कर में लगे रहते हैं और वहां पर भगवान हमारी जिंदगी के दिन गिन रहे होते हैं।
और भगवान सोचते हैं कि मैंने इसको किस लक्ष्य की सिद्धि के लिए संसार में भेजा था और यह मुर्ख क्या कर रहा है।
हमने इस को स्वयं को खोज कर स्वयं को प्राप्त करने के लिए संसार में भेजा था और यह मूर्ख यहां पर स्वयं को खोकर जगत को प्राप्त करने में लगा है जो इसको मिलना ही नहीं है।
अब हमें यह सोचना है कि हम भक्तों की लिस्ट में क्यों नहीं आ पाते हैं?
क्योंकि जिन भक्तों की लिस्ट इस धरा धाम पर उपलब्ध है।
यह वह भगत थे जिन्होंने भक्ति अपने जीवन के प्रारंभिक समय में ही शुरू की थी अपनी बाल्यावस्था से ही प्राप्त की थी।
उन्होंने युवावस्था में भक्ति की थी, किशोरावस्था मे भक्ति की थी बाल्यावस्था में भक्ति की थी।
और दोस्तों हम क्या करते हैं कि जब हमारे शरीर में शक्ति होती हैं तब हम संसार के कामों में लगे रहते हैं धन कमाने में, यश कमाने में, नाम कमाने में लगे रहते हैं और जब हम शक्तिहीन हो जाते हैं तब हम भक्ति के रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं। जहां पर हमें कामयाबी नहीं मिलती है।
इसलिए दोस्तों संत सतगुरुओ ने जो भक्ति की सही उम्र हमें बताइ है वह है हमें जीवन के प्रथम पड़ाव में, प्रारंभिक समय में, बाल्यावस्था में ही भक्ति करनी शुरू कर देनी चाहिए। ताकि अंत समय तक हम भक्ति के मार्ग को पकड़े रहे पकड़ के चलने में समर्थ रहे।
ताकि इस बीच कोई भी विषय विकार लोग लालच हमारे आसपास ना आए और हमें अपने चंगुल में ना जकड़े। इसलिए हमें भक्ति अपने जीवन के पहले चरण से ही शुरु कर देनी चाहिए। ऐसा करने से हमें अपने अंतिम समय तक भक्ति करने में किसी प्रकार कि कोई तकलीफ नहीं आएगी।
दोस्तों बचपन से भक्ति करने से हमारा मन, हमारा तन, हमारा दिमाग हमेशा प्रसन्ना चित रहता है और हमें किसी प्रकार का रोग द्वेष नहीं लगता है।
हमें खुद के बारे में, अपने जीवन के बारे में सब कुछ अच्छे से पता चल जाता है इसलिए हम ऐसा कोई कर्म नहीं करते हैं जिसकी वजह से हमें दुख या तकलीफ मिले।
जो इंसान बचपन से ही भक्ति के रास्ते पर चलते हैं भगवान उनके रास्ते के सभी कष्ट सभी दुख है खुद ही दूर कर देते हैं
हमें भगवान से कहने की भी जरूरत नहीं पड़ती।
इसलिए दोस्तों अंत में मैं इस लेख के माध्यम से आप सभी को यह संदेश देना चाहती हूं कि भक्ति करने का सही समय आपकी बाल्यावस्था है यानी कि हमें भक्ति करना अपने जीवन के पहले पड़ाव से ही शुरु कर देना चाहिए।
दोस्तों आशा करती हूं आज की भक्ति से जुड़ी यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। अगर आप इसके बारे में अपना कोई सुझाव देना चाहे तो हमें कमेंट करके जरूर लिखें हमें आपके कमेंट का इंतजार रहेगा।
दोस्तों आज के लेख में बस इतना ही मिलते हैं एक और रोचक जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।।