हैलो दोस्तों कैसे हैं आप! उम्मीद करती हूं आप सब अच्छे
और स्वस्थ होंगे।
thebetterlives.com में आपका स्वागत है।
मैं हूं आपकी दोस्त पुष्पा डाबोदिया।
दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!
तो आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास टॉपिक जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे!
दोस्तों आज हम बात करेंगे एक ऐसे टॉपिक पर जो बहुत ही रोचक है दोस्तों पहले के जमाने में डाक कैसे भेजी जाती थी? कबूतरों के जरिए डाक भेजने का क्या कारण था।
जी हां दोस्तों इस विषय पर आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
दोस्तों कभी कभी मन में अजीब से सवाल उठते हैं। दोस्तों आपने यह फिल्म तो देखी होगी "मैंने प्यार किया" जिसमें एक गाना था कबूतर जा जा जा यह गाना सुनकर मन में सवाल आया कि पहले के जमाने में चिट्ठी पहुंचाने के लिए कबूतर का इस्तेमाल क्यों किया जाता था?
दोस्तों इसके अलावा मन मे एक और सवाल भी आया कि कबूतर के अलावा कोई और पक्षी जैसे कौवा, तोता या कोई अन्य पक्षी का इस्तेमाल चिट्ठी पहुंचाने के लिए क्यों नहीं किया जाता था।
अब दोस्तों दिमाग में सवाल आया है तो उसका जवाब भी ढुंढना होगा और हमने जवाब ढूंढ भी लिया है!
और वही जवाब आज हम आपको इस पोस्ट में बताने वाले हैं इसलिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।
दोस्तों एक जमाना हुआ करता था जब व्हाट्सएप फोन तो छोड़ो पोस्टमैन भी नहीं हुआ करते थे। ऐसे में चिट्ठी या फिर संदेश को एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने के लिए दूत को भेजा जाता था। यह लोग या तो घोड़े पर जाते थे या पैदल ही चले जाते थे।
दोस्तों उस वक्त पक्की सड़कें नहीं हुआ करती थी।
इसके अलावा दुश्मनों का डर भी बना रहता था इसलिए यह काम है थोड़ा मुश्किल लगता था।
इसके साथ ही इसमें समय भी बहुत लगता था।
दोस्तों ऐसी कंडीशन में लोगों को कबूतर एक बेस्ट ऑप्शन लगा और लोगों का यह आईडिया काम भी कर गया।
लेकिन दोस्तों हमारा यहां पर एक सवाल यह भी है कि इस काम के लिए कबूतर ही क्यों? कोई और पक्षी क्यों नहीं?
जैसे तोता कौवा चिड़िया मैना इनको क्यों नहीं भेजा जाता था इस काम के लिए कबूतर को ही क्यों पसंद किया गया?
तो दोस्तों इसके लिए आपको बता दें कि कबूतर के पास रास्ता खोजने की एक अद्भुत स्किल होती है जो अन्य पक्षियों के पास नहीं होती।
दोस्तों सफेद रंग के कबूतर की एक प्रजाति होती है जिसके पास रास्ता खोजने की अद्भुत कला होती है।
दोस्तों इनकी खासियत यह होती है कि यह अपना काम करके हर बार सुरक्षित घर लौट आते हैं।
दोस्तों शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि कबूतर को दिशा की बहुत अच्छी नॉलेज होती है।
दोस्तों ऐसे में कबूतर को जहां भी छोड़ा जाए वह घर वापस जरूर आ जाता है। इसके अलावा कबूतर में इतनी समझ होती है कि वह पृथ्वी पर किस जगह है इसका भी पता बड़ी आसानी से लगा लेता है।
और दोस्तों इसी समझदारी का इस्तेमाल करके वह दुनिया के किसी भी कोने में हो वहां से सुरक्षित घर वापिस आ जाता है।
दोस्तों ऐसा माना जाता है कि कबूतर सूर्य की स्थिति और कोण का इस्तेमाल करके जगह का पता लगा लेता है और अपना रास्ता खोज लेता है।
ऐसे में लोगों ने कबूतर को पालना शुरू कर दिया वह लोग कबूतर के पैरों में चिठ्ठी बांध कर उसको उड़ा देते थे और कबूतर चिट्ठी पहुंचा कर वापिस आ जाता था।
इसके अलावा दोस्तों कबूतर को इस काम के लिए चुनने का एक और भी कारण है वह है उसके उड़ने की स्पीड।
दोस्तों आपको बता दें कि कबूतर 70 से 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ सकता है और वह दिन में 1000 किलोमीटर तक का सफर तय कर सकता है।
इसके अलावा दोस्तों कबूतर 6000 फीट की ऊंचाई तक उड़ते हैं तो दोस्तों इसी वजह से इस काम के लिए कबूतरों को चुना गया।
दोस्तो आप को शायद पता नहीं होगा कि उड़ीसा पुलिस ने साल 1946 में कबूतर सेवा शुरू की थी।
उस वक्त ऐसे इलाके जहां पर वायर के खंबे और टेलीफोन की सुविधा मौजूद नहीं थी उस वक्त 200 कबूतर इस काम के लिए उड़ीसा पुलिस को अलर्ट किए गए थे।
दोस्तों इंटरेस्टिंग बात यह है कि 13 अप्रैल 1948 के दिन तत्कालीन प्रोग्राम के लिए जवाहरलाल नेहरू ने कबूतरों के जरिए ही संबलपुर से कटप के राज्य अधिकारियों को संदेश भेजा था।
दोस्तों आपको बता दें आज भी उड़ीसा पुलिस तूफान चक्रवात के समय संदेश भेजने के लिए कबूतरो का ही इस्तेमाल करती हैं जो शायद आपको नहीं पता होगा।
ऐसी ही रोचक जानकारी लेने के लिए होमपेज पर जाएं।
दोस्तों आशा करती हूं आज की जानकारी आपको पसंद आई होगी ऐसे ही इंटरेस्टिंग और महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर आए
आज के लेख में बस इतना ही मिलते हैं एक और नई जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपकी दोस्त पुष्पा डाबोदिया।।
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