हैलो दोस्तों कैसे हैं आप! उम्मीद करती हूं आप सब अच्छे
और स्वस्थ होंगे।
thebetterlives.com में आपका स्वागत है।
मैं हूं आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।
दोस्तों मै आपके लिए लेकर आती हूं बहुत ही खास और इंटरेस्टिंग जानकारी जो आपकी नॉलेज के लिए है बेहद जरूरी!
तो आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं एक खास टॉपिक जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे!
दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से हुमन ब्रेन से जुड़े कुछ साइकोलॉजिकल और रहस्यमई फैक्ट बताएंगे। इसलिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।
दोस्तों ह्यूमन ब्रेन काफी कंपलेक्स है जिसकी वजह से हर अगले दिन कोई न कोई नई रिसर्च सामने आती हैं जो हमारी बिहेवियर के बारे में नया फैक्ट बताती है।
दोस्तों आज हम ऐसे ही 10 फैक्ट्स के बारे में जिक्र करेंगे
जिसकी मदद से इस पोस्ट के खत्म होते- होते आप अपने बारे में कुछ नई चीजें सीख चुके होंगे।
तो आइए जानते हैं:-
फैक्ट नंबर 1 - आप जिस तरह से दुनिया को देखते हो यह इस बात पर डिपेंड करता है कि आप किस तरह की मूवीस या टीवी शो देखते हो।
दोस्तों रिसर्च बताती है कि जो लोग क्राइम, इन्वेस्टिगेशन या डिटक्टिव वाले टीवी शोज या फिर ज्यादा न्यूज़ देखते हैं। वह लोग दुनिया में होने वाले सीरियस क्राइम को औवरएस्टीमेट करते हैं और इस तरह के टीवी शोज उन्हें यह देखने पर मजबूर कर सकते हैं कि दुनिया एक काफी डरावनी जगह है।
और वह उसमें एक विक्टिम है और जो लोग ज्यादा कॉमेडी या फेंटेसी वाले शोज और मूवीस देखते हैं। वह दुनिया को ज्यादा पॉजिटिव देखते हैं। यह साईंलॉजिकल फैक्ट इस बात को कंफर्म करता है कि जो कुछ भी मीडिया हम डेली बेसिस पर कंज्यूम करते हैं। वह हमारे वर्ल्डव्यू को पॉजिटिव या नेगेटिवली करने की ताकत रखता है।
फैक्ट नंबर 2 - दोस्तों हमारी सोच और हमारे दिमाग को समझने की एबिलिटी हमारे कल्चर पर डिपेंड करती है। सोशल साइकोलॉजिस्ट 'रिचर्ड निसबट' ने अपनी बुक, "द जॉग्रफी ऑफ थॉट" में बताया है कि किस तरह से एशियन कंट्रीज के लोगों के मेंटल प्रोसेसेस अलग होते हैं।
वेस्टर्न कंट्रीज के लोगों से यानी दोनों कल्चर की फिलोसॉफीज, सोशल स्ट्रक्चर, रिलेजिन और एजुकेशनल सिस्टम काफी अलग है जस्ट बिकॉज दोनों जगहों पर अलग अलग तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ती है।
दोस्तों इसी वजह से एशियन कंट्रीज जैसे इंडिया, जापान, कोरिया या चाइना के लोगों की थिंकिंग या सोच और प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने की अप्रोच ज्यादा हॉलिस्टिक होती है।
और वह अनरिलेटिव चीजों में भी छुपे हुए पैटर्न को ढूंढ पाते हैं। जबकि वेस्टनर की थिंकिंग ज्यादा एनालिटिकल होती है और वह हर ऑब्जेक्ट को बाकी चीजों से अनरिलेटेड और सेपरेट मानते हैं।
दोस्तों औथर ने बुक में एग्जांपल देते हुए बताया है कि जैसे आप वेस्टर्न लोगों को एक फोटो दिखाओ। तो चांसेस है कि वह उस फोटो पर मेन ऑब्जेक्ट पर फोकस करेंगे। जबकि एशियन कल्चर में बडे हुए लोग फोटो के बैकग्राउंड और उसके कटाक्ष पर फोकस करेंगे कि उस फोटो का औवरऑल मैसेज क्या है।
फैक्ट नंबर 3 - दोस्तों हम एक समय पर सिर्फ 150 लोगों पर क्लोज रिलेशनशिप रख सकते हैं। यह फैक्ट एवल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी से निकल कर आता है। जहां पर रिसर्चर हमेशा से यह जानना चाहते थे कि हर स्पीशीज के सोशल ग्रुप मैं जर्नली कितने मेंबर होते हैं।
और दोस्तों इसका पता करने के लिए रिसर्चर ने हर जानवर के दिमाग का साइज और उनके स्टेबल रिलेशनशिप के बीच का कनेक्शन ढूंढा और तब पता लगा कि हमारे अनस्ट्रक्चर्ड के सोशल ग्रुप हमेशा छोटे और उनके आपस में रिलेशनशिप टाइट रहते थे
सब लोग एक दूसरे को जानते थे और ग्रुप का सर्वाइवर बढ़ाने के लिए एक दूसरे की मदद करते थे और यह ग्रुप बहुत लंबे टाइम तक 100 या 150 मेंबर्स के ऊपर कभी गया ही नहीं। यही रीजन है कि क्यों हम भी अभी तक लिमिटेड लोगो के साथ क्लोज कनेक्शन बनाने के लिए बाध्य है।
फैक्ट नंबर 4 - दोस्तों यूज़वली हमें यह लगता है कि हम डिसीजन काफी सोच समझ कर और लॉजिकली लेते हैं। पर साइकोलॉजी बताती हैं कि हम ज्यादातर डिसीजन अनकॉन्शियसली लेते हैं।
दोस्तों एक एग्जांपल के तौर पर अगर आप एक नया फोन खरीदने की सोच रहे हो। तो आप इस बात का ध्यान रखोगे कि वह फोन आपकी हर नीड यानी की जरूरत को पूरा कर सके। उसका प्राइस आपके वुडगेट यानी कि बजट के अंदर ही आए और उसे मैन्युफैक्चर करने वाली कंपनी रिलायबल हो। पर इन फैक्टर के पीछे भी आपकी कई अनकॉन्शियस बॉयसिस होती है।
दोस्तों जो आपको बोलती है कि आप वही प्रोडक्ट खरीदो जो आजकल ट्रेड में है या फिर आप हमेशा से यह बोलते आए हो कि आपको छोटे फोन पसंद है। तो आपका दिमाग आपको इसी स्टोरी के साथ कंसर्ट रहने के लिए पुश करेगा।
फैक्ट नंबर 5 - जब भी हमें कोई रुल स्टैक्ट लगता है या फिर जब भी हमें ऐसा लगता है कि हमसे हमारी फ्रीडम छीनी जा रही है। तब हमारा मन करता है कि हम सिर्फ वहीं रूल नहीं बल्कि बाकी रूल भी तोड़े। साइकोलॉजिस्ट हमारे इस बिहेवियर को बोलते हैं रिएक्ट॑स।
दोस्तों ये हमें बताता है कि क्यों किसी पर गुस्सा करके और उन्हें फोर्स करके अपनी बात मनवाना कभी इफेक्टिव नहीं होता। हमे दूसरों की बात मानना तभी प्रिफरेंस लगता है जब हमें लगता है कि हम अपना काम अपनी मर्जी से कर रहे हैं।
फैक्ट नंबर 6 - दोस्तों हम जिंदा और मरी हुई चीज में हुमन फैक्ट् और फैमिलियर हैं। पैटर्न ढूंढने की कोशिश करते हैं जैसे कई बार हमें बादलों में कोई शक्ल या जानवर दिखने लग जाता है।
दोस्तों जिन लोगों को इसके पीछे की साइकोलॉजी नहीं पता वह ऐसे पेट्रंन को चमत्कार मानते हैं। लेकिन साइकोलॉजी में यह बात बहुत ही नॉर्मल है और दोस्तों साइंटिस्ट इसको बोलते हैं पैरिडोलिया।
दोस्तों एवोल्यूशन की वजह से हमारा दिमाग कांस्टेंटली अपने एनवायरमेंट में दूसरे इंसान, जानवर या काम आने वाले औजार ढूंढता रहता है।
जिसकी वजह से इन से मिलते जुलते पैटर्न भी हमारे दिमाग को ऐसे सिग्नल देते हैं जैसे हमें असली में कोई इंसान या जानवर दिखा हो।
फैक्ट नंबर 7 - दोस्तों आपकी सबसे पक्की और इंपॉर्टेंट मैमोरिज गलत है। क्योंकि अगर मैं आपके स्कूल का पहला दिन और आपका पहला किस्स या किसी एक्सीडेंट के बारे में पूछु तो जाहिर सी बात है आप झट से उस समय मैमरी के बारे में बता दोगे।
लेकिन रिसर्च के हिसाब से आपको इन मैमरीज का ज्यादातर हिस्सा बस थोड़ा बहुत ही याद मिलेगा।
दोस्तों साइकोलॉजी बताती है कि हमारी पक्की मेमोरीज को फ्लैशबल मेमोरी बोलते हैं।
लेकिन हमारी इस तरह की मेमोरी भी गलतियों से भरी होती है।
और यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा काम होता है अपनी मेमोरी से ऐसी जरूरी इंफॉर्मेशन निकालना जो फयुक्चर में काम आ सके।
दोस्तों जिसकी वजह से आपको ज्यादातर है यह याद नहीं
रहता कि आपके पासट में हकीकत में क्या हुआ था। लेकिन यह याद रहता है कि आपने उस सचुएसन को कैसे हैंडल किया था।
फैक्ट नंबर 8 - दोस्तों जनरली हमें वह गाने सबसे ज्यादा अच्छे लगते हैं जो हमने अपने स्कूल या कॉलेज टाइम पर सुने थे और यह इसलिए होता है क्योंकि गाने सुनते टाइम हमारा दिमाग डोपामिन और इसके जैसे ही अच्छा फील कराने वाले केमिकल रिलीज करता है।
और दोस्तों 12 से 22 साल की उम्र के बीच हमारा डेवलपिंग ब्रेन इन केमिकल्स को और भी ज्यादा मात्रा में पैदा कर रहा होता है। जिससे हमें हर चीज ज्यादा इंपॉर्टेंट लगती है
और तभी लाइफ के इस गोल में हम अपनी मैमरीज पर काफी ध्यान देते हैं और सालों बाद भी उन सभी पुराने गानों को पसंद करते हैं।
फैक्ट नंबर 8 - दोस्तों आप अपने आपको फूड, सेक्स या डेंजर पर अटेंशन पे करने से नहीं रोक सकते। क्योंकि हमारा यह बिहेवियर हमारे दिमाग के सबसे पुराने हिस्से से आता है और हमें जिंदा रखने के लिए वह हर समय अपने इन्वायरमेंट को स्कैन कर रहा होता है।
और दोस्तों सोच रहा होता है कि क्या मैं इसे खा सकता हूं?
क्या मैं इसके साथ सेक्स कर सकता हूं?
या फिर क्या मुझे इससे कोई खतरा है?
सर्वाइकल के लिए इन प्रश्नों के उत्तर बहुत मायने रखते हैं।
क्योंकि दोस्तों खाने के बिना हम जी नहीं सकते और सेक्स के बिना हम अपनी लाइफ को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे और अगर हमारी जान खतरे में है तो पहले के 2 सवाल तो मैटर ही नहीं करते।
फैक्ट नंबर 9 - हमें अपने से ज्यादा दूसरों पर पैसे खर्च करने में ज्यादा खुशी मिलती है।
हममें से ज्यादातर लोग यह मानते हैं अपनी पसंद की चीज लेना और खुद को प्रायरिटाइज करना हमेशा खुश रहने के लिए बहुत जरूरी है।
लेकिन साइकोलॉजी रिसर्च बताती है कि यह सच नहीं है क्योंकि दूसरों पर खर्च किया हुआ पैसा हमें अपने बारे में अच्छा फील करता है। इस से हम दूसरों के आगे ज्यादा रिस्पांसबल और जिम्मेदार दिखते हैं और इसके साथ ही हम दूसरों की मदद करने से हमारे सोशल रिलेशन भी अच्छे और मजबूत होते हैं।
और दोस्तों साइंस इस बारे में बिल्कुल क्लियर है कि हमारी लॉन्ग टर्म खुशी के लिए सबसे इंपोर्टेंट चीज अच्छे रिलेशनशिप ही होते हैं ना कि पैसा और उससे खरीदी हुई चीजें।
फैक्ट नंबर 10 - दोस्तों ब्रेन और लोगोज आपको अलग तरह से इनफ्लुएंस करते हैं। जब आप दुखी या डरे हुए होते हो। क्योंकि जब हम ज्यादा खुश होते हैं तो वह हम इपलसिम बन जाते हैं
और दोस्तों इस वक्त हम नई और गंभीर चीजें ट्राई करने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते हैं और पैसे भी ज्यादा खर्च करते हैं। लेकिन जब भी हम सैड फील कर रहे होते हैं, दुखी होते हैं तब हमें कोई फैमिलियर चीज चाहिए होती है और हम नई तरह की चीजों से दूर रहना पसंद करते हैं
दोस्तों यह चीज आइस क्रीम फ्लेवर से लेकर मूवी तक कुछ भी हो सकती है।
दोस्तों साइकोलॉजी बताती है कि हमारा यह बिहेवियर हमारे डोपामिन लेवल पर बेसड होता है। जब जब हमारे दिमाग में डोपामिन ज्यादा होता है तब वह हमें एकसटोइटिड बना देता है और जब हमें अननोन एनवायरमेंट में जाने से कम डर लगता है।
दोस्तों एक पार्टी के बारे में सोचो कि कैसे आप जब ज्यादा खुश होते हो तो आप ज्यादा ड्रिंक करते हो और कुछ भी खा लेते हो और जब आपका डोपामिन कम हो जाता है।
जैसे एक स्ट्रेसफुल दिन के बाद आप अपनी पुरानी हैबिट्स पर ही फोकस करते हो और अपने इन्हीं इमोशंस की वजह से शॉपिंग करते टाइम उन् ब्रांड्स को खरीदते हो जिन्हें आप पहले से ही जानते हो।
दोस्तों उम्मीद करती हूं आज के यह साइकोलॉजी फैक्ट्स को पढ़कर आपको बहुत कुछ नया सीखने को मिला होगा।
ऐसी ही रोचक जानकारी लेने के लिए होमपेज पर जाएं।
दोस्तों ऐसी ही रोचक पोस्ट पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर आए
दोस्तों आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं एक और नई जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने दीवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई का विशेष ध्यान रखें
धन्यवाद।
आपकी दोस्त अंशिका डाबोदिया।।
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