"उकाब" पक्षी को "एलिफैंट बर्ड्स" के नाम से जाना जाता है। यद्यपि इसका हांथियों से कोई सम्बन्ध नहीं था किन्तु औसत एलिफेंट बर्ड लगभग 10 फीट लम्बे होने और इसका वजन लगभग 1,000 पाउंड यानि आधा टन होने के कारण हो सकता है इसे एलिफेंट बार्ड कहा जाने लगा।
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आज मै आपके लिए लेकर आई हूं, एक खास पक्षी के बारे में कुछ जानकारी , आज हम आपको बताएंगे उकाब पक्षी के बारे में, एक उकाब पक्षी की उम्र करीब 70 साल होती है और इस उम्र तक पहुंचने के लिए इसको बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,
जब इसकी उम्र 40 साल होती है तो इसके पंजे जिसकी वजह से वह शिकार को दबोचता है कुंद हो जाते हैं और इसकी चोच टेढ़ी हो जाती है और उम्र के गुजरने के साथ साथ उसके पर जिससे वह आसमान की बुलंदियों को छूता है।
इस पक्षी के पैतृक स्थान के सम्बन्ध में अभी तक हुए शोधों से या पता चला है की यह पक्षी मेडागास्कर के हिंद महासागर द्वीप पर रहता था, जो अफ्रीका के पूर्वी तट से दूर है। एलिफेंट बर्ड्स के बारे में दिलचस्प तथ्यों में से एक यह है कि द्वीप का वातावरण संभवतः उनके विशाल आकार में योगदान देता है। क्योंकि यह एक रसीला उष्णकटिबंधीय वातावरण था जिसमें इसे खाने के लिए बहुत सारी वनस्पति थी लेकिन । जिससे यह पक्षी बड़े आकार में विकसित हुआ । यह एक विकासवादी सिद्धांत के कारण है जिसे द्वीपीय विशालतावाद कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह इस बात का प्रमाण है कि मेडागास्कर के हाथी पक्षियों का शिकार किया गया था और भोजन के लिए कसाई थे जिनके अवशेष लगभग 10,000 साल पहले के मिले हैं। जूलॉजिकल सोसाइटी लंदन, ब्रिटेन के वैज्ञानिक डॉ जेम्स हैन्सफोर्ड के मत अनुसार ये पक्षी कम से कम 6,000 वर्षों से मानव आगमन की तारीख को पीछे धकेल देता है।"
वह इतने भारी हो जाते हैं जो इसके सीने के साथ चिपक जाते हैं,
इन सब मुश्किलों के बावजूद उसके पास सिर्फ दो रास्ते होते हैं।
पहला रास्ता जो अपनी मौत को तस्लीम कर ले मान ले, हिम्मत हार जाए, अपनी हार मान ले और मर जाए।
दूसरा रास्ता 150 दिन की मेहनत यानी 5 महीने की मेहनत के लिए तैयार हो जाए आपका क्या खयाल है, शाहीन कौन सा रास्ता चूज करेगा।
जी बिल्कुल शाहीन हार नहीं मानता, वह अपने आप को 5 महीने की मेहनत के लिए तैयार करेगा।
वह पहाड़ों में चला जाता है और पहाड़ों में जाकर सबसे पहले अपनी सोच को पत्थरों पर मारता है।
और अपनी सोच को पत्थरों पर मार मार के उसको तोड़ देता है,
जब नई चोंच निकलती है तो नई चोंच की मदद से वह अपना एक-एक नाखून उखाड़ के फेंक देता है।
जब नए नाखून निकलते हैं तो वह चौच की मदद से अपना एक-एक बाल उखाड़ के फेंक देता है।
ऐसा करते हुए उसको 5 महीने निकल जाते हैं, जब 5 महीने बाद वह पहाड़ की चोटी पर खड़े होकर वह देखता है नई चोच नए बाल नए पंजे के साथ उड़ता है तो उसे महसूस होता है जैसे दूसरा जन्म लिया हो नया जन्म लिया हो इस तरह वह पक्षी जिंदगी की 30 बहारें देख पाता है।
उकाब की इस कहानी से हमें सबक मिलता है कि हमारे लिए जिंदगी को बदलना बहुत जरूरी है।
इसके लिए हमें चाहे कितनी भी मेहनत क्यों ना करनी पड़े याद रखिएगा दुनिया के उसूल बदलने से कुछ नहीं होता जब तक आप अपने आप को नहीं बदल लेते दुनिया नहीं बदलती।
मैं पुष्पा अपने सभी हिंदुस्तानी भाई बहनों को कामयाबी की शिखर की ओर बढ़ते देखना चाहती हूं हालांकि असल जिंदगी अंदर है बाहर नहीं एक अच्छा इंसान आपके अंदर है बाहर नहीं, इसलिए खुद को बदलीऐ बहार की दुनिया को बदलने के चक्कर में अपना कीमती टाइम बर्बाद ना करें।
अब सवाल यह आता है कि खुद को कैसे बदला जाए, खुद को बदलने के लिए अपनी कमियों अपनी कोताही को अपनी कमजोरियों को identify किया जाए, तलाश किया जाए, खोजा जाए, ढूंढा जाए
फिर उनको बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश की जाए,
खुद को बेहतर बनाने के फलसफे का मतलब यही है,
अपनी ग्रूमिंग की जाए सेल्फ ग्रुमिंग की जाए अपनी जात के ऊपर काम किया जाए,
सेल्फ इन्वेस्टमेंट, भगवान ने आपको बहुत सारे गुण देके इस संसार में भेजा है आप उनको पहचाने उनका उपयोग करें,
अपनी ताकत को पहचाने, खुद को पहचाने, थैंक यू।
ऐसी नई नई जानकारी पढ़ने के लिए हमारी thebetterlives.com पर आना उम्मीद करती हूं आज की जानकारी आपको पसंद आई होगी ।
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