एक विदेशी भारत में किस जाति में शामिल होगा?

जाति हिंदू धर्म की विरासत है। उन गैर-हिंदुओं की कोई जाति नहीं है।

हिंदू धर्म के अलावा, भारत में अन्य धर्म हैं। भारतीय नागरिकता में शामिल होने का मतलब हिंदू धर्म में शामिल होना नहीं है।

जाति की परिभाषा :— जो कभी जाती नहीं

भारत के स्वतंत्र होने के बाद, संविधान के अनुच्छेद 15 में कहा गया है: "जाति, धर्म या जन्म स्थान के कारण किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा" अनुच्छेद 17 स्पष्ट रूप से "गैर-संपर्क प्रणाली" को समाप्त करता है। राष्ट्रपति कोविद एक दलित हैं और प्रधानमंत्री मोदी बनिया हैं। यूरोप में सामंती अभिजात वर्ग की तरह भारत में जाति व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो रही है।

समकालीन नागरिक जो भारतीय नागरिकता में शामिल होते हैं, वे किसी भी जाति के नहीं होंगे।

जातियों का जन्म कब हुआ? क्या भारत के साथ -साथ सभी देशों में भी जाति व्यवस्था लागू है?

भारत में 6000 से भी ज्यादा जातियाँ व उपजातियां है,

और अन्य देशों में नही है, और यही कारण है कि वो आज वो देश अपने से आगे है।

विदेशियों के भारत में प्रवेश करने और भारतीय बनने के इतिहास की दो स्थितियाँ हैं:

यदि वे हिंदू विश्वास को स्वीकार करते हैं, तो उन्हें आमतौर पर उनकी मूल सामाजिक स्थिति के अनुसार संबंधित जाति द्वारा मान्यता दी जाएगी, और धीरे-धीरे संबंधित जाति में एकीकृत किया जाएगा। उदाहरण के लिए, राजाओं और नेताओं को क्षत्रिय द्वारा स्वीकार किया जाता है, और किसानों को वैशयो द्वारा स्वीकार किया जाता है।

यदि कोई हिंदू मान्यताओं को स्वीकार नहीं करता है, जैसे कि मुस्लिम या कोई और अन्य समुदाय तो वह मूल जातियों में से किसी भी एक स्वतंत्र जाति में गिना नहीं जाएगा।  

दिल्ली राजवंश, भारत के दौरान, बड़ी संख्या में मुसलमानों ने भारत में प्रवेश करने के बाद किसी भी जाति को स्वीकार नहीं किया, और हिंदुओं ने भी इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद अपनी मूल जाति को समाप्त कर दिया।

भारत में वर्ण अर्थात जाति व्यवस्था क्यों बनाई गई थी क्या जरूरत पड़ गयी थी जातिगत समाज बनाने की?

हज़ारों वर्ष पहले आज की तरह न तो लोकतंत्र था , न बराबरी का सिद्धांत था , न ही जगह जगह शिक्षा के लिए स्कूल कॉलेज थे , न मुद्रा थी , न बैंक थे । लोगों के पास अपना निजी अनुभव , ज्ञान , हुनर , पैतृक सम्पत्ति होती थी जिसे या तो उनकी सहमति से प्रयोग कर सकते थे , उसकी अदला बदली कर सकते थे या लड़ाई झगड़े से पा सकते थे ।

उस ज़माने में ज्ञान किसी की अनुमति से ही हासिल हो सकता था , उसे जबर्दस्ती नहीं पा सकते थे । लोगों का ज्ञान या हुनर भी सीमित ही था इसलिए उसे भी लोग गुप्त रखते थे , वह चाहे व्यापार से सम्बंधित हो, गणित , कारीगरी या कृषि का हो ।

हिंदुओं की अपनी पहचान को अलग करने के लिए पवित्र रेखाएँ और अन्य संकेत हैं, और गैर-हिंदुओं को आम तौर पर दैनिक जीवन में क्षत्रिय माना जाता है।

लेकिन मैंं आपको बता दूं कि यह जो कास्ट सिस्टम आया है भारत में यह एकदम से नहीं आया है यह बहुत ही पुराने समय से अपने पूर्वजों की हितों की रक्षा करते हुए तो यह अनुवांशिक रूप से जाति प्रथा भारत में समाई हुई है। तो हम यह कह सकते हैं कि आजकल के भारतीय यानी कि कलयुग में भले ही जाति ना होती हो लेकिन जो लोग जातियों को मानते हैं वह यही सोचतेेेेे हैं कि यह हमारे पूर्वजों ने पहले से ही अच्छे से सोच समझकर यह जाति प्रथा बनाई होगी उदाहरण के लिए ब्राह्मणों का काम पहले शिक्षा देना होता था तो आजकल ज्यादातर लोग आपको आजकल बीच शिक्षा देते हुए मिलेंगे या फिर जैसे कि आप देख सकते हो। 

जतियों का जन्म जिसे हम वर्ण व्यवसथा भी कहते हैं का उल्लेख हमारे वेदों और शास्त्रों दोनों में मिलता है। वेदों के अनुसार अलग अलग वर्ण का जन्म शृष्टि के आरंभ में ही हो गया था जब ब्रम्हा जी के शरीर के अलग अलग भाग से अलग अलग वर्ण के लोगों का जन्म हुआ। इस लिए हम ये कह सकते हैं की हमारे यहाँ वर्ण व्यवस्था आदि काल से है।

जाति काफी हद तक अपने स्वयं के पेशे से निर्धारित होती है। इसके अलावा, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एक ही पेशे की जाति की स्थिति अलग-अलग है।

जाति अतीत में पुरानी संस्कृति का एक निशान है, जिसे पूर्वजों द्वारा पारित किया गया था। अब कानून में इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन जीवन के रीति-रिवाजों में अभी भी इसका उल्लेख नहीं किया गया है। विदेशी प्रवासियों में केवल राष्ट्रीयता होती है, कानून में कोई जाति नहीं होगी, और उन्हें रिवाज में किसी भी जाति का जातीय समूह नहीं माना जाता है।

अगर थ्योरी के हिसाब से बात करें तो भारतीय जाति प्रथा को हम चार मुख्य भागों में बांट सकते हैं जो कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र प्लस एक और जिनको हम अछूत बोलते हैं वह भी होते हैं।
लेकिन इनके अलावा इनकी सबकास्ट भी बहुत होती है जैसे कि आपको मैंने ऊपर लिखा बनिया, ब्राह्मण, कुम्हार, चमार, खाती वगैरा-वगैरा बहुत ज्यादा जात पात यहां पर पाया जाता है।
भारत में हम इसको सरनेम से पहचानते हैं लेकिन आजकल यह कम होता जा रहा है और भारत विकास की तरफ से ऐसे जैसे तेजी से आगे बढ़ रहा है तो लोग धीरे-धीरे करके जाति प्रथा को भूल भूल रहे हैं और जो कि काफी अच्छी बात भी है हमारी समाज के लिए और हमारे खुद के लिए भी अन्य देशों की तुलना में यह सिर्फ अकेले भारत में पाया जाता है जहां पर जात पात पाई जाती है अन्यथा किसी भी अन्य देश में यह नहीं पाई जाती। 

उम्मीद है आपको लेख पसंद आया होगा और पसंद आया तो लाइक तो नहीं कर सकते तो यूट्यूब पर जाकर सब्सक्राइब ही कर दो।
और अगर आपको ऐसी ही जानकारियां पसंद है तो इसी वेबसाइट पर अन्य लेख बहुत ही अच्छे-अच्छे मैंने समझोगे रख रखे हैं वह आप जाकर पढ़ सकते हैं और इस वेबसाइट को आप अपनी ईमेल आईडी डाल कर सब्सक्राइब भी कर सकते हैं ताकि जब भी मैं अगली पोस्ट डालो तो सीधा आपके पास ईमेल में नोटिफिकेशन आ जाए यहां तक करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और मेरे बारे में ज्यादा जानना चाहते हो लिंक दे रही हूं आ जाना:



एक टिप्पणी भेजें

Thanks for writing back

और नया पुराने